गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
क्या आप जानते हैं कि उक्त पंक्ति में गुरू शब्द का इतने व्यापक संदर्भों में क्यों प्रयोग किया गया है? क्या आप जानते हैं गुरू पूर्णिमा क्या है? विभिन्न धर्मों में इसे क्यों और कैसे मनाते हैं? इसे उत्सव को कब मनाते हैं? गुरू पूर्णिमा की महत्ता क्या है? चलिए जानते हैं -
गुरू पूर्णिमा क्या है? यह किस अर्थ में है?
भारत विभिन्न धार्मिक त्यौहारों और उत्सवों से समृद्ध एक बहुधार्मिक एवं बहुसांस्कृतिक देश है। एक वर्ष के बारह मासों में यहां किसी-न-किसी उत्सव, त्यौहार या धार्मिक दिवस के रंग बिखरते रहते हैं। इन्हीं में से एक 'गुरू पूर्णिमा'। दूसरे शब्दों में यह गुरू-शिष्य सम्बंध पर आधारित एक पावन पर्व भी है। गुरु पूर्णिमा वह दिन है जब हम विशेष रूप से अपने गुरु की महिमा को याद करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं।
संस्कृत में 'गु' का अर्थ है "अज्ञान" और 'रु' का अर्थ है नष्ट करना। इसलिए, "गुरु" शब्द का अर्थ है "वह जो अपने शिष्यों की अज्ञानता को नष्ट कर देता है और उन्हें ज्ञान के प्रकाश में लाता है।" सच्चा गुरु, या आध्यात्मिक गुरु, एक सिद्ध संत या महापुरुष होता जिसने ईश्वर को प्राप्त किया है, और जो इस संसार में अन्य जीवात्माओं को ईश्वर के लिए दिव्य प्रेम प्राप्त करने में मदद करने के लिए अवतरित होता है।
इसे क्यों और कब मनाते हैं?
प्रतिवर्ष गुरू पूर्णिमा आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह प्रतिवर्ष जुलाई अथवा अगस्त माह में मनाई जाती है। गुरु पूर्णिमा के दिन 'महर्षि वेदव्यास' का जन्म हुआ था। महर्षि वेदव्यास ने ही महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की थी। इसके साथ ही सभी अठारह पुराणों की रचना भी गुरु वेद व्यास द्वारा ही की गई इसलिए इस दिन को 'व्यास पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्मग्रंथ के अनुसार, भगवान वेद व्यास जी का जन्म आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ही हुआ था जिसके उपलक्ष्य में यह पर्व निर्धारित हुआ है।
यह एक ऐसा दिन है जब साधक न केवल अपने गुरु को, बल्कि महर्षि वेद व्यास को भी नमन करते हैं। इसे व्यास पूजा भी कहा जाता है।
इस वर्ष गुरु पूर्णिमा सन 2022 में जुलाई की 13 तारीख को है। भविष्य में 2023 को यह पर्व 3 जुलाई 2022 को मनाया जाएगा।
विभिन्न धर्मों में इस पर्व का स्वरूप कैसा है?
गुरु पूर्णिमा त्यौहार हिंदुओं, जैनियों और बौद्धों द्वारा अपने आध्यात्मिक गुरू या शिक्षक को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। उस आध्यात्मिक शिक्षक को सनातन धर्म शब्दावली के अनुसार 'गुरु' कहा जाता है।
बौद्ध धर्म के अनुयायी गौतम बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गये पहिले उपदेश के सम्मान में गुरु पूर्णिमा पर्व मानते हैं। सदगुरु के अनुसार: गुरु पूर्णिमा वह दिवस है जब पहली बार आदियोगी अर्थात भगवान शिव ने सप्तऋषियों को योग का ज्ञान देकर खुद को आदि गुरु के रूप में स्थापित किया।
सिख धर्म में केवल एक ईश्वर, और अपने दस गुरुओं की वाणी को ही जीवन के वास्तविक सत्य के रूप में मानते है। सिख धर्म का एक प्रचलित कहावत रूपी दोहा निम्न प्रकार से है:
गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागु पाँव,
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए॥
भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य के छात्र भी इस पवित्र त्यौहार को बड़े धूम-धाम से मनाते हैं। स्कूली छात्र-छात्राएँ गुरु वंदना व उपहारों से अपने शिक्षकों का सम्मान करते हैं, तथा उनके ऋणी होने का एहसाह कराते हैं। जैन धर्म के अनुसार, यह दिन चौमासा अर्थात चार महीने के बरसात के मौसम की शुरुआत के रूप में और त्रीनोक गुहा पूर्णिमा के रूप में मानते हैं।
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
भावार्थ: गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु ही शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म है; उन सद्गुरु को प्रणाम ।
गुरु गूंगे गुरु बाबरे गुरु के रहिये दास,
गुरु जो भेजे नरक को, स्वर्ग कि रखिये आस!
माटी से मूरत गढ़े, सद्गुरु फूके प्राण।
कर अपूर्ण को पूर्ण गुरु, भव से देता त्राण ॥
गुरू पूर्णिमा को कैसे मनाए?
विभिन्न धर्मों में गुरू पूर्णिमा को मनाने की विधि या पद्धति अलग-अलग है मगर सामान्यतः हम इसे यूं बता सकते हैं कि इस दिन एक आध्यात्मिक साधक/व्यक्ति प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठ जाते हैं और स्नान के बाद अपने गुरु को प्रणाम करके दिन की शुरुआत करते हैं। वे उनके चरण जल से धोते हैं और उनके चरण कमलों पर पुष्प चढ़ाते हैं। यह विशेष अनुष्ठान गुरु को अपना मन तथा सर्वसमर्पण करने और उनकी सेवा, या सेवा को प्राप्त करने की कामना से की जाती है। पूरा दिन गुरु और भगवान की महिमा में गाई जाने वाली विशेष प्रार्थनाओं में व्यतीत होता है।
- गुरु पूर्णिमा के दिन जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ कपड़ों का धारण किया जाता है।
- मंदिर अथवा घरों में बैठकर गुरु की उपासना की जाती है।
- गुरु के पूजन हेतु कई लोग उनकी फोटो के सामने पाठ पूजा करते हैं कई लोग ध्यान मुद्रा में रहकर गुरु मंत्र का जाप करते हैं।
- सिख समाज के लोग इस दिन गुरुद्वारे जाकर कीर्तन एवं पाठ पूजा करते हैं।
- एक साधक रोकर अपने गुरू को पुकारने का प्रयत्न करता है, उनसे प्रेम बढ़ाता है, ईश्वर से अपने रिश्ते को अधिक मजबूत बनाने का प्रयत्न करता है।
- इस दिन विशेष रूप से एकदम सात्विक प्रकृति के खान-पान, रहन-सहन में रहकर मन एवं बुद्धि को ईश्वर-स्वरूप अपने गुरू के समक्ष अपना सर्वसमर्पण की भावना को दृढ़ करता है।
- गुरु पूर्णिमा के दिन लोक-कल्याण की भावना से दान-दक्षिणा का आयोजन भी किया जाता है।
- इस दिन खास महत्व इस बात को दिया जाता है कि हम अपने गुरू द्वारा प्रदत्त ज्ञान का स्मरण करें, उनके प्रति भक्ति की प्रगाढ़ता को बढ़ाएं और ऐसे ही दूसरे भजन-संकीर्तन द्वारा स्वयं के मन-बुद्धि की शुद्धि करें और गुरू कृपा से ईश्वरप्राप्ति करके अपना कल्याण करें।
आधारित प्रश्नावली [ 10 ]
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गुरू-स्वरूप जगद्गुरू श्री कृपालु जी?
कलियुग में अब तक सिर्फ चार ही महापुरुषों को 'जगद्गुरू' (समस्त विश्व के गुरू) की उपाधि प्राप्त हैं। काशी विद्वत परिषद् के अनुसार, 14 जनवरी 1957 को पंचम जगद्गुरू की उपाधि श्री कृपालु जी महाराज को दी गई है। इसके अलावा उनकी अन्य उपाधियाँ हैं - श्रीमत्पदवाक्यप्रमाणपारावारीण, वेदमार्गप्रतिष्ठापनाचार्य, निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य, सनातनवैदिकधर्मसत्सम्प्रदायपरमाचार्य, भक्तियोगरसावतार, भगवदनन्त, श्रीविभूषित जगद्गुरू श्री कृपालु जी महाराज। उनके अलौकिक वैदिक वाणी से प्रभावित होकर अनगिनत लोगों ने उन्हें अपना गुरू बनाकर साक्षात भगवान रूप में आराधना करके उनके सत्संग से लाभ प्राप्त किया है और आज भी यह जारी है। आम जनमानस को यह सलाह है कि, आप उन्हें एक बार अवश्य सुनें और अपने जीवन को कृतार्थ करें।
जगद्गुरू कृपालु परिषत् द्वारा 2022 की कार्यक्रम सूची?
जगद्गुरू कृपालु परिषद् द्वारा आधिकारिक तौर पर गुरू पूर्णिमा को मनाने हेतु 9-14 जुलाई की तिथि रखी गई है। अन्य कार्यक्रम निम्नवत हैं -
एक साधक से कुछ व्यक्तिगत प्रश्न
इस दिन एक साधक से उसकी अंतरात्मा कुछ महत्पूर्ण सवाल भी करती है अर्थात गुरू पूर्णिमा एक स्वयं के भीतर की स्थिति के आत्म-निरीक्षण का भी समय है। कुछ मूलभूत प्रश्न इस प्रकार हैं -
- क्या आपने अपने गुरू में सचमुच में गुरू की भावना कर रखी है या सिर्फ दिखावा है!
- गुरू के दिए तत्वज्ञान को क्या आप अपने जीवन में उतारते भी हैं या सिर्फ वे मात्र शब्द भर हैं!
- शास्र कहते हैं 'गुरूर साक्षात् परमब्रह्म' - क्या सच में आपका हृदय इसे स्वीकार पाया है!
- पिछली गुरू पूर्णिमा और अब की गुरू पूर्णिमा में हरि-गुरू के प्रति प्रेम बढ़ा या पुराना हाल अभ भी है!
- गुरू शरणागति कितनी हुई? ईश्वर-दर्शन की ललक कितनी तीव्र है? विचार किया!
- क्या सूक्ष्म-अहंकार आपको अब भी उकसाता है? या क्रोध जलाता है? या कामना दौड़ाती है?
- किसी के अपमान या दुर्व्यवहार करने पर आपका मन तीव्र विचलित हो जाया करता है या मनःस्थिरता कायम है?
[ हैप्पी गुरू पूर्णिमा ........सुनिए गुरूपूर्णिमा पर संक्षिप्त तत्वज्ञान ]
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🌷 राधे राधे 🌷


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