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जगद्गुरु श्री कृपालु जी - एक परिचय

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विश्व के पंचम मूल जगद्गुरु है।

आपको काशी विद्वत परिषत् (भारत के लगभग 500 शीर्षस्थ शास्त्रज्ञ, वेदज्ञ विद्वानों की सभा है) ने काशी आने का निमंत्रण दिया।

         श्री कृपालु जी के कठिन संस्कृत में दिए गए विलक्षण प्रवचन को सुनकर एवं भक्ति रस से ओतप्रोत अलौकिक व्यक्तित्व को देखकर सभी विद्वान मंत्रमुग्ध हो गये । तब सब ने एकमत होकर आपको "जगद्गुरुत्तम" की उपाधि से विभूषित किया। उन्होंने स्वीकार  किया कि श्री कृपालुजी जगतगुरु में भी सर्वोत्तम हैं।

        ....धन्यो मान्य जगद्गुरुत्तम पदै: सोऽयं समभ्यच्यते।

यह ऐतिहासिक घटना 14 जनवरी सन 1957 को हुई। उस समय श्री कृपालु जी महाराज की आयु मात्र 34 वर्ष की थी ।जगदगुरू श्री कृपालुजी महाराज विश्व के पांचवे मूल जगतगुरु हैं। उनके पूर्व केवल 4 महापुरुषों को ही जगद्गुरु की मूल उपाधि प्रदान की गई थी- जगद्गुरु श्री शंकराचार्य, जगद्गुरु श्री निंबार्काचार्य, जगतगुरु श्री रामानुजाचार्य, जगतगुरु श्री माधवाचार्य।

पूर्ववर्ती आचार्यों के दार्शनिक सिद्धांतों को सत्य सिद्ध करते हुए अपना समन्वयवादी दार्शनिक सिद्धांत प्रस्तुत करने वाले जगदगुरू श्री कृपालुजी महाराज को काशी विद्वत परिषद ने 'निखिल दर्शन समन्वय आचार्य 'की उपाधि से विभूषित किया तथा उन्हें  'भक्तियोग रसावतार' की उपाधि दी।

     विश्व के पाँचवें मूल जगद्गुरु एवं काशी विद्वत् परिषत् द्वारा जगद्गुरूत्तम की उपाधि से विभूषित श्री कृपालु जी महाराज को 'सनातनवैदिकधर्मप्रतिष्ठापन सत्सम्प्रदाय परमाचार्य' की उपाधि से भी अलंकृत किया गया है। इस दृष्टि से श्री महाराज जी के श्रीमुख से निकले दिव्य श्रीवचन ही वास्तविक सनातन वैदिक धर्म के उद्घोषक हैं। उनके उपदेश का प्रत्येक शब्द शास्त्र वेद सम्मत होने से स्वतः प्रामाणिक है। इसी हेतु काशी विद्वत् परिषत् ने महाराज श्री को 'श्रीमद्पदवाक्यप्रमाणपारावारीण' की उपाधि से भी अलंकृत किया। श्री महाराज जी ने हम कलियुगी जीवों के कल्याणार्थ समस्त वेद शास्त्रों का सार अपने दिव्य प्रवचनों में अत्यंत सरल एवं रोचक शैली में प्रस्तुत किया है।

आपने 'प्रेम रस मदिरा', 'प्रेम रस सिद्धांत' और 'राधा गोविन्द गीत' जैसे अनेक दिव्य ग्रंथों की रचना की है जो संपूर्ण विश्व को भक्ति करने की सही राह दिखा रहे हैं। आपके द्वारा विश्व को दी गई अनमोल धरोहरों में भक्ति धाम मनगढ़ स्थित - भक्ति मंदिर, वृन्दावन धाम स्थित - प्रेम मंदिर और बरसाना धाम स्थित - कीर्ति मंदिर आदि प्रमुख हैं।

श्री कृपालु जी के सानिध्य में वैदिक ज्ञान तथा आध्यात्मिक तत्वों में प्रशिक्षण पाकर उनकी तीन पुत्रियाों (सुश्री विशाखा त्रिपाठी, सुश्री कृष्णा त्रिपाठी और सुश्री श्यामा त्रिपाठी) समेत विभिन्न प्रचारक व प्रचारिकाएं समस्त विश्व में उनके दर्शन, तत्ववज्ञान का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।

( प्रचारक एवं प्रचारिकाओं की सूची )

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