भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि में मथुरा नगरी में श्रीकृष्ण भगवान ने पृथ्वी पर अपना अवतार लिया जिसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
➦ इसे कैसे मनाते हैं - जन्माष्टमी दिव्यादेश
भगवान हमारे स्वामी हैं, सखा हैं, पुत्र हैं, प्रियतम हैं...ऐसी भावना बनाकर; हमारा उनसे नित्य सम्बन्ध है ये जानकर फिर मानकर...उनसे उनका दर्शन, उनका दिव्य प्रेम मांगना है और न भुक्ति मांगना है न मुक्ति
रोकर दो चीज़ मांगना है - उनका दर्शन। दर्शन लक्ष्य नहीं है लेकिन वो आवैं तो हम और दूसरी चीज़ मांगना है। पहले दर्शन मांग रहे हैं; फिर आ गए, हाँ, आ गए। हाँ अब तो ठीक हैं, नहीं अभी कहां ठीक है। अब शुरूआत होगी। ऐ, लो अब क्या शुरूआत होगी। अपना प्रेम दो। क्या करेगा प्रेम लेके दर्शन तो मिल रहा है। सेवा करूंगा, प्रेम से सेवा होती है। प्रेम-रहित सेवा को सेवा नहीं कहते, ऐक्टिंग कहते हैं।
तो प्रेम बिना मिले, सेवा हो ही नहीं सकती।
बस, दो कामनाओं को लेकर, रोकर भगवान से याचना करना है। सदा सर्वत्र उनको अपने साथ रियलाइज(realise) करना है भीतर से। अभ्यास करना होगा, अभ्यास। सुन लिया, हाँ। जान लिया, हाँ। कोई लाभ नहीं। अभ्यास करोगे वो उतना लाभ है।
साधना करने से अंतःकरण शुद्ध होगा तब गुरू द्वारा वह अंतःकरण और इंद्रियाँ दिव्य बनायी जाएंगी तब दिव्य भगवान का; श्रीकृष्ण का, वास्तविक ध्यान होगा, वास्तविक दर्शन होगा, वास्तविक श्रवण होगा, वास्तविक आलिंगन होगा। सब रस जैसे संसारी लोगों से प्राप्त करते हो वैसे उनसे भी मिलेगा। येह समझकर साधना करना है।
हर जन्माष्टमी पर अकेले में रीड(read) करना है, हमारा प्रेम कितना आगे बढ़ा। और फील करना है। ऑ, फील नहीं करेंगे तो हाँ, ठीक है जो होगा देखा जाएगा। देखा नहीं जाएगा, भोगा जाएगा। चौरासी लाख में जब जाओेगे। कुत्ते बनकर दर-दर भटकोगे, डण्डे खाओगे तब याद आएगी, कृपालु ने कहा था और हमने हें, हें कर दिया था। माना नहीं, प्रैक्टिकल नहीं किया। बोलो
कन्हैया लाल की....जय,
कन्हैय्या लाला की....जय,
यशोदा के लाल की....जय,
लाल गोपाल की....जय,
मेरे नन्दलाल की....जय।
➦ श्रीकृष्ण के वो विलक्षण चार गुण
जितनी मात्रा में हमारा प्रेम होगा श्रीकृष्ण से, उतनी मात्रा में उनके दर्शन से, स्पर्श से, शब्द-श्रवण से, यानी
जो चार माधुरी हैं मेन श्रीकृष्ण में -
➯ लीला-माधुरी,
➯ प्रेम-माधुरी,
➯ रूप-माधुरी और
➯ मुरली-माधुरी
➯ लीला-माधुरी,
➯ प्रेम-माधुरी,
➯ रूप-माधुरी और
➯ मुरली-माधुरी
इन चारों
में अनन्त रस भरा है और यही चार चीजें श्रीकृष्ण में सारे भगवानों से अधिक हैं।
हाँ, बुद्धि लगाओ। भगवान् एक ही होता है और मैं बोल रहा हूँ
सारे भगवानों से नहीं, भगवान् के जितने स्वरूप हैं, स्वांश-नारायण हैं, महाविष्णु हैं, शंकर जी हैं, रामजी हैं, तमाम
जो भगवान् के अवतार हुए हैं न।
अवतारा ह्यसंख्येयाः
तो ये सारे अवतारों में ६० गुण होते हैं लेकिन श्रीकृष्ण में ६४ गुण हैं। तो वो चार गुण जो एक्स्ट्रा हैं, वे यही हैं- लीला-माधुरी, प्रेम माधुरी, रूप- माधुरी, मुरली-माधुरी। तो इन चारों का रस आपको आपके प्रेम की मात्रा के अनुसार मिलेगा। आपका प्रेम चार आने, इसका रस भी आपको चार आने, एक का प्रेम आठ आने उसको उसी मुरली नाद में आठ आने रस मिल रहा है। एक ही आवाज जा रही है लेकिन-
अवतारा ह्यसंख्येयाः
तो ये सारे अवतारों में ६० गुण होते हैं लेकिन श्रीकृष्ण में ६४ गुण हैं। तो वो चार गुण जो एक्स्ट्रा हैं, वे यही हैं- लीला-माधुरी, प्रेम माधुरी, रूप- माधुरी, मुरली-माधुरी। तो इन चारों का रस आपको आपके प्रेम की मात्रा के अनुसार मिलेगा। आपका प्रेम चार आने, इसका रस भी आपको चार आने, एक का प्रेम आठ आने उसको उसी मुरली नाद में आठ आने रस मिल रहा है। एक ही आवाज जा रही है लेकिन-
स्व स्व प्रेम अनुरूप भक्त आस्वादय।
करे हुड़ा हुड़ी बाड़े मुख नाहिं मुड़ी॥
गौरांग महाप्रभु कहते हैं कि होड़ होती है, होड़, प्रेम और श्रीकृष्ण के
माधुर्य में। वो लीला-माधुर्य, प्रेम-माधुर्य, रूप-माधुर्य, मुरली-माधुर्य, चारों
को भूलना नहीं, इनमें होड़ होती है। प्रेम बढ़ा, तो श्यामसुन्दर ने माधुर्य बढ़ा दिया और प्रेम बढ़ा उन्होंने और माधुर्य
बढ़ा दिया, कोई हारता नहीं। 'नाहिं
मुड़ी' इन दोनों में कोई हारता नहीं। अनवरत रस बढ़ता ही जाता
है। तो प्रेम से सेवा होगी इसलिये हम प्रेम चाहते हैं। ये हमारा पुरुषार्थ है,
एम है, लक्ष्य है। सेवा कार्य है, लक्ष्य प्रेम है और उसका मार्ग केवल भक्ति। "यानी हमारा सम्बन्ध
श्रीकृष्ण से है और उस सम्बन्ध को पक्का करेगा भक्ति मार्ग और उससे पुरस्कार
मिलेगा प्रेम और उसका अन्तिम लाभ मिलेगा सेवा। उस सेवा का जो आनन्द होगा वो
अनन्तकोटि ब्रह्मानन्द से भी आगे है। तो केवल भक्ति ही अभिधेय है।"
सम्बन्ध हमारा श्रीकृष्ण से नित्य सनातन है, स्वयं सिद्ध है और उसका जो मार्ग है वो नवधा
भक्ति-मार्ग है और जो लक्ष्य है वो प्रेम है और जो प्राप्तव्य है वह श्रीकृष्ण की
सेवा है।
- भक्तियोग रसावतार जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
(संदर्भ: नारद भक्ति दर्शन)
➦ श्रीकृष्ण सम्बन्धी लीला-मंचन कार्यक्रम
जगद्गुरु कृपालु परिषद् द्वारा विभिन्न तत्वज्ञान के व्यावहारिक, जीवन्त उदाहरण और महापुरुषों के चरित्र के दर्शन स्वरूप पर आयोजित प्रोग्राम/लीलाएं -
☞जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण लीला
☞ श्रीकृष्ण झूलन लीला
☞ श्री राधाकृष्ण बाल लीला
☞ शरत्पूर्णिमा पर श्रीकृष्ण लीला
☞ श्रीकृष्ण द्वारा रक्षा पर लीला
☞ भक्तिभवन से लीला
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| (श्रीकृष्ण - यशोदा लीलाएं) |
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➦ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर सुन्दर भजन
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तू ही तू ही तू ही तो मेरा है नन्द नन्दन,
मैं भी मैं भी मैं भी तो हु तेरा नन्द नन्दन,
तू ही मेरा तू ही मेरा स्वामी नन्द नन्दन,
मैं भी मैं भी मैं भी तो हु तेरा नन्द नन्दन,
तू ही मेरा तू ही मेरा स्वामी नन्द नन्दन,
तू ही मेरा तू ही मेरा सखा नन्द नन्दन,
तू ही मेरा तू ही मेरा सूत नन्द नन्दन,
तू ही मेरा तू ही मेरा पिये नन्द नन्दन,
तू ही मेरी प्रति मति रति नन्द नन्दन,
तेरे सिवा मेरा कोई नहीं नन्द नन्दन,
तू ही मम माता पिता भारता नन्द नन्दन
तेरा भी कहा हुआ है यह नन्द नन्दन,
तू ही तू ही तू ही तो मेरा है नन्द नन्दन.....
माना मैं हु अति ही पतित नन्द नन्दन,
तू भी तो पतित पावन नन्द नन्दन,
माना मैं हु अति दीन हीं नन्द नन्दन,
तू भी तो है दीना नाथ मम नन्द नन्दन
माना मैंने पिछला बिगाड़ा नन्द नन्दन,
अगला तो अब तो बना दे तू नन्द नन्दन
माना मैं हु सब विधि दोषी नन्द नन्दन,
तू तो है किरपालु किरपा करो नन्द नन्दन,
तू ही तू ही तो है मेरा नन्द नन्दन...
➫ प्रेम रस मदिरा
नंद महर-घर बजत बधाई।
जायो पूत आजु नंदरानी, नाचत गावत लोग लुगाई।
दूध दही माखन की कांदो, सब मिलि भादौंं मास मचाई।
बाजत झाँझ मृदंग उपंगहिं , वीना वेनु शंख शहनाई।
छिरकत चोवा चंदन थिरकत, करि जयकार कुसुम बरसाई।
शिव समाधि बिसराइ भजे ब्रज, देखन के मिस कुँवर कन्हाई।
याचक भये अयाचक सिगरे, हम *'कृपालु'* धनि ब्रजरज पाई।
➦ जन्माष्टमी के महत्वपूर्ण यूट्यूब लिंक
- श्रीकृष्ण जन्माष्टमी - प्रेम मंदिर - Click Here
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- आयो ब्रज रस बेचन वारो - Click Here
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➤ कृपालु निधि पर साधना लाइव देखें [LIVE] - Click Here
➦ श्रीकृष्ण संग एक खेल खेलें - एक चुनौती
नीचे दिए गए प्रश्न पर एक निगाह डालें। प्रश्न के साथ चलते जाएं और अंत में दिए गए चार विकल्पों में सही उत्तर का जवाब दें।
प्रश्न: दिए गए चित्र को देखें। श्रीकृष्ण मनगढ़ के भक्ति कुंज से 20 किमी पूर्व की ओर चलते हैं जहाँ उन्हें वृन्दावन का प्रेम मंदिर मिलता है। फिर 10 किमी वापस उसी रास्ते आ जाते हैं। अब उनका सिर उत्तर दिशा में और बायाँ हाथ मनगढ़ जबकि दायाँ हाथ प्रेम मंदिर की तरफ हो जाते हैं। अब श्रीकृष्ण, जिनका सिर उत्तर में है, वो 10 किमी उत्तर-पूर्व की ओर जाते हैं और फिर 10 किमी वापस आ जाते हैं। इसी तरह पुनः 10 किमी उत्तर-पश्चिम जाकर पुनः वापस आ जाते हैं। और अब वो प्रेम मंदिर की ओर मुख करके 4 किमी चलते हैं।
1. बताइए कि श्रीकृष्ण अब मनगढ़ से कितनी दूर हैं।
a) K b) S c) L d) T
a) 10 किमी b) 14 किमी c) 20 किमी d) 0 किमी
2. अपनी कॉपी, जिस आपने सवाल को हल किया, अगर उसको 90 डिग्री दाएं तरफ घुमा दिया जाए तो कौन-सा अंग्रेजी अक्षर दिखेगा जो श्रीकृष्ण के एक नाम का ही पहला अक्षर होगा।a) K b) S c) L d) T
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| (शुभकामनाएं) |
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं....
🌷 जय श्री राधे 🌷





Radhe Radhe
ReplyDeleteAnswer - 1) 14 km 2) K
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