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स्वतंत्रता दिवस: जानिए कौन है जो स्वतंत्र है?

     15 अगस्त का दिन भारत में स्वतंत्रता दिवस के नाम से जाना जाता है अर्थात उन लोगों का दिवस जो स्वतंत्र हो चुके हैं। भारत के संदर्भ में इसका अर्थ हुआ कि हम अंग्रेजों और उनके शासन से स्वतंत्र हो गए। 
     इस बाहरी स्वतंत्रता से इतर उस आंतरिक पराधीनता का क्या जो हम रोज़ महसूस कर रहे हैं? सवाल उठता है कि  क्या सचमुच हम स्वतंत्र हैं? आइए जगद्गुरू श्री कृपालु जी से जानते हैं - स्वतंत्रता के गूढ़ रहस्य।

 श्री कृपालु जी के श्रीमुख से...
 आज स्वतंत्रता दिवस है। वास्तव में कोई स्वतंत्र नहीं है। अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड के आवागमन में घूमने वाले सभी जीव माया के आधीन हैं। वो माया के अन्तर्गत काल, कर्म, स्वभाव, गुण बहुत सी चीज़ें हैं, जिनके आधीन हैं। मनुष्य हो, पशु हो, पक्षी हो, कोई भी हो। और, हम लोगों में कुछ माया से परे भी होते हैं लेकिन वे भगवान् के आधीन हैं। मायाधीन को माया नचाती है और भगवान् के आधीन महापुरुषों को माया नहीं छू सकती लेकिन भगवान् के अनुसार चलना पड़ता है, वो भी आधीन हैं। और भगवान् भक्त के आधीन हैं-
अहं भक्तपराधीनो
अहं भक्तपराधीनो ह्यस्वतंत्र इव द्विज।
साधुभिर्ग्रस्तहृदयो भक्तैर्भक्तजनप्रियः॥ भागवत, 9-4-63 ]

      इसलिये न भगवान् स्वतंत्र हैं, न भगवान् को पा लेने वाले भक्त स्वतंत्र हैं और मायाधीन तो बिचारे परतंत्र हैं ही। हम लोगों का अनुभव है। लेकिन हम लोग बक-बक करने में टॉप करते हैं।अहंकार के कारण। हम किसी के आगे सिर नहीं झुकाते। हम किसी के आगे हाथ नहीं फ़ैलाते। एक-एक क्षण जो माया के आधीन है, वो ऐसी बक-बक क्यों करता है?

आश्चर्य है! काम के आधीन, क्रोध के आधीन, लोभ के आधीन बड़े-बड़े दैत्य हमारे पीछे लगे हैं। और फिर भी हम बोले जाते हैं।

    तो स्वतन्त्रता की जो असली परिभाषा है वो ये है कि कुछ लोग माया से स्वतंत्र हैं और कुछ लोग भगवान् से स्वतंत्र हैं, मनमाना। माया से स्वतंत्र जो हैं नहीं, जो कहते हैं हम हैं और भगवान् से स्वतंत्र वे ही लोग हैं जो माया के अण्डर में हैं। लेकिन माया का परिणाम दुःख है, उनकी गुलामी वाला दुःख भोगता है और भगवान की गुलामी में आनंद है। इतना बड़ा अंतर है। भगवान् सम्बन्धी काम, क्रोध, लोभ, मोह सबमें आनंद है। और, संसार सम्बन्धी काम, क्रोध, लोभ, मोह, सबमें दुःख ही दुःख है। इसलिये भगवान् सम्बन्धी आनन्द यानि भगवत्प्राप्ति करना ही वास्तविक स्वतंत्रता का लक्षण है और उसी के लिये प्रयत्न करना चाहिेए।

 - जगद्गुरू श्री कृपालु जी महाराज

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