मैं राधा-तत्व के विषय में विशेष कुछ नहीं कहना चाहता, केवल इतना ही समझ लेना
चाहिये कि जिस तत्व को श्रीकृष्ण-ब्रह्म सदा ढूँढा करते हैं, एवं राधाकृपा ही से उस तत्व
को प्राप्त कर पाते हैं, तथा जिस
तत्व को शुकदेव जी ने भी अत्यंत गूढ़ समझ कर भागवत सदृश विशाल ग्रंथ में प्रकट
नहीं किया, उस तत्व
के विषय में मैं थोड़ा बहुत लिखने की सामर्थ्य रखते हुये भी नहीं लिखना चाहता।

केवल संकेत में ही इतना समझ लेना चाहिये कि यह तत्व परात्पर तत्व है, एवं इस तत्व को जानने का
अधिकारी भी कोई कोई ही होता है। साधारणतया इतना परिज्ञान पर्याप्त है कि राधा
कृष्ण दोनों ही तत्व वस्तुतः एक ही हैं। जो राधा हैं, वही श्रीकृष्ण हैं। जो
श्रीकृष्ण हैं, वही राधा
हैं। रसिकों के दृष्टिकोण से राधिका का महत्व श्रीकृष्ण से भी अधिक है। आप लोग
राधातत्व के विषय में मेरे कुछ भी न लिखने से असंतुष्ट होंगे, अतएव कुछ लिख ही देते हैं।
राधा तत्व के विषय में पूर्ण ज्ञान राधा जी को ही है, किन्तु उन्होंने अपने तत्व
का वर्णन अपने आप ही नहीं किया। हाँ, राधावतार गौरांग महाप्रभु ने स्वयं राधातत्व के विषय में जो कुछ लिखा
है उसे हम उद्धृत करते हैं।
"चैतन्य चरितामृत"
अर्थात् परात्पर ब्रह्म श्रीकृष्ण की शक्तियां अनंत हैं, जिनमें तीन प्रधान हैं। एक का नाम चित् शक्ति, एक का नाम माया शक्ति एवं एक का नाम जीव शक्ति है। वे क्रम से अन्तरङ्ग, बहिरङ्ग, एवं तटस्थ हैं। इन समस्त शक्तियों में अन्तरङ्गचित्शक्ति, स्वरूपशक्ति होने से सर्वश्रेष्ठ है। इसी भाव को विष्णु पुराण ६-७-६१ में कहता है:-
"चैतन्य चरितामृत"
"कृष्णेर अनंत शक्ति ताते तिन् प्रधान। चिच्छक्ति, मायाशक्ति, जीवशक्ति नाम अन्तरङ्गा बहिरङ्गा तटस्था कहि जारे। अन्तरङ्गा स्वरूपशक्तिसवार ऊपरे।"
अर्थात् परात्पर ब्रह्म श्रीकृष्ण की शक्तियां अनंत हैं, जिनमें तीन प्रधान हैं। एक का नाम चित् शक्ति, एक का नाम माया शक्ति एवं एक का नाम जीव शक्ति है। वे क्रम से अन्तरङ्ग, बहिरङ्ग, एवं तटस्थ हैं। इन समस्त शक्तियों में अन्तरङ्गचित्शक्ति, स्वरूपशक्ति होने से सर्वश्रेष्ठ है। इसी भाव को विष्णु पुराण ६-७-६१ में कहता है:-
"विष्णुशक्तिः परा प्रोंक्ता क्षेत्रज्ञाख्या तथाऽपरा अविद्या कर्मसंज्ञान्या तृतीया शक्ति रिष्यते"
फिर चैतन्य चरितामृत कहता है:-
"सत् चित् आनंदमय कृष्णेर स्वरूपअर्थात् ब्रह्म श्रीकृष्ण का स्वस्वरूपशक्तिमयस्वरूप, सत्, चित् , आनंदमय है, अतएव उपरोक्त स्वस्वरूप-शक्ति तीन प्रकार की हुई। आनंद स्वरूपशक्ति से ह्लादिनीशक्ति की उत्पत्ति, तथा सत्-स्वरूप-शक्ति से संधिनी-शक्ति की उत्पत्ति, एवं चितस्वरुपशक्ति से संवित्ज्ञानशक्ति की उत्पत्ति होती है।
अतएव स्वरूपशक्ति होय तिन रूप आनंदांशे ह्लादिनी सदंशे संधिनी चिदंशे संवित् जारे ज्ञान करिमानि।"
![]() |
"ह्लादिनी संधिनी संवित् त्वय्येका सर्वसंश्रये । हास्तापकरी मिश्रा त्वयि नो गुणवर्जिते॥"
फिर चैतन्य चरितामृत कहता है:-
कृष्णके आह्लादे ताते नाम ह्लादिनी
सेइ शक्ति द्वारे सुख आस्वादे आपनी
सुख रूप कृष्ण करे सुख आस्वादन
भक्त गणे सुख दिते ह्लादिनी कारन
ह्लादिनी सार अंश तार प्रेम नाम
आनंद चिन्मय रस प्रेमेर आख्यान
प्रेमेर परम सार महाभाव जानी
सेइ महाभाव रूप राधा ठकुरानी
महाभाव चिंतामणि राधारस्वरूप
ललितादि सखी तार काय व्यूह रूप
भावार्थ यह कि श्रीकृष्ण को आनंद देने से ही उस शक्ति का नाम
ह्लादिनी-शक्ति है। इसी शक्ति के द्वार पर ब्रह्म श्रीकृष्ण सुख का अनुभव करते
हैं। यही शक्ति भक्तों को सुख देने में समर्थ है। ह्लादिनी-शक्ति के भी सार तत्व
का नाम प्रेम है, जो कि
आनन्द-चिन्मयरसयुक्त है। प्रेम के भी परम सार को महाभाव कहते हैं, वही महाभाव रूपी प्रेमरस ही
राधा ठकुरानी है। महाभाव चिंतामणि रूपी, राधा का स्वरूप है,
एवं ललितादिक नित्यसखियाँ उनकी कायव्यूह रूप हैं। इसके अतिरिक्त
स्कंद- पुराण कहता है :-
आत्मातु राधिका तस्य तयैव रमणादसौ आत्माराम इति प्रोक्तो मुनिभिर्गूढ-वेदिभिःअर्थात् ब्रह्म श्रीकृष्ण की आत्मा ही राधिका है। उन्हीं में रमण करने के कारण श्रीकृष्ण का नाम आत्माराम बताया गया है। अतएव भागवत में भी आया है:- 'आत्मारामोऽप्यरीरमत्' तात्पर्य यह कि राधिका ब्रह्म श्रीकृष्ण की आत्मास्वरूपा हैं। अन्य पुराणों में भी वेदव्यास ने लिखा है:-
आत्मारामस्य कृष्णस्य ध्रुवमात्मास्ति राधिका तस्या दास्यप्रभावेण विरहोस्मान्न संस्पृशेत्।अर्थात् यमुना जी द्वारिकास्थ रानियों से कहती हैं कि राधिका निश्चित रूप से श्रीकृष्ण की आत्मा हैं, क्योंकि उन्हीं की दासता के प्रभाव से उनके दर्शन मात्र से श्रीकृष्ण का दर्शन होता है।

हम सब ब्रज गोपियों को श्रीकृष्ण का विरह स्पर्श तक नहीं कर
पाता। अब आइये उपनिषदों की उक्ति से विचार करें:-
तस्यशक्तयस्त्वनेकधा ह्लादिनीसंधिनीज्ञानेच्छाक्रियाद्यावहुबिधाशक्तयः, तास्वाह्लादिनी वरीयसी परमांतरंगभूता राधा कृप्णेन आरराध्यते इति कृष्णं समाराधय सदेति राधिका गान्धर्वेति व्यपदिश्यते इत्यस्या एव कायव्यूहरूपगोप्यो महिष्यः श्रीश्चेति।
येयं राधा यश्च कृष्णो रसाब्धिदें हेनैकः क्रीडनार्थे द्विधाभूत् , राधावै हरेःसर्वेश्वरी सर्वविद्या सनातनी कृष्ण-प्राणाधिदेवी चेतिविविक्तेवेदास्तु- वन्ति यस्या गतिं ब्रह्मभागा वदन्ति महिमास्याः स्वायुर्मानेनापि कालेन वक्तुं न चोत्सहे, सैव यस्य प्रसीदति तस्य करतलावकलितं परमं धामेति।
भावार्थ चैतन्य चरितामृत की पूर्व उक्ति के ही अनुरूप है। विशेष रूप
से वेद कहता है कि राधा कृष्ण दोनों ही एक हैं, केवल लीला के हेतु ही दो रूप धारण कर लिये हैं। मै किसी भी आयु में
उनकी महिमा का वर्णन नहीं कर सकता,
वे जिस पर प्रसन्न हो जाय उसी को उनका लोक मिलता है। वे श्रीकृष्ण की
आराध्य देवी हैं। वे सब की स्वामिनी हैं। वे क्या हैं? क्या नहीं हैं? यह तो वेद भी नहीं जान पाता, केवल एकांत में स्तुति
मात्र करता है। आगे चल कर वेद परम अंतरङ्ग बात कहता है: -
"एतामविज्ञाय यः कृष्णमारावयितुमिच्छति स मुढ़तमो मूढतमश्च"
अर्थात् श्री राधिका के बिना जो श्रीकृष्ण की आराधना करना चाहता है
वह अत्यन्त मूर्ख है। अत्यन्त मूर्ख है।
अब आप यह समझ गये होंगे कि ईश्वर है, तथा वह साकार एवं निराकार दोनों है। जीवों पर
अकारण कृपा करने के हेतु ही अवतार लेता है। उसके समस्तअवतारों में परम मधुरअवतार
श्रीकृष्णावतार है। एवं राधिका जी उन्हीं श्रीकृष्ण की अपर स्वरूपशक्तिभूता हैं।
अतएव राधाकृष्ण प्राप्ति ही चरम लक्ष्य सिद्ध हुआ।
.jpg)
(जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज)
- राधा नाम जपने में रूचि अगर न आए तो सुनें 🢃

श्रीराधाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं....
__________________________________
Main Tags:
राधाष्टमी 2022, राधा कौन हैं?, प्रेम रस सिद्धांत के संदर्भ, राधा तत्व, जगद्गुरू श्री कृपालु जी तत्वज्ञान, वेदों शास्त्रों में राधा के संदर्भ, चैतन्य चरितामृत के संदर्भ, Radhashtami 2022, Radha Tatva by Jagadguru shri Kripalu ji, Prem Ras Siddhant references about Radha, Radha name in Ved or Vedic Scriptures, Chaitanya Charitamrit

राधारानी की जय हो
ReplyDeletePost a Comment