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मन-बुद्धि का समर्पण कैसे करें?

एक साधक के कुछ प्रश्न हैं - मन बुद्धि का समर्पण कैसे करें? महापुरुष की बुद्धि में बुद्धि कैसे जोड़ें ?

मन बुद्धि समर्पण करने का अभ्यास सभी मनुष्यों को है, क्योंकि संसार में इसके बिना काम ही नहीं चल सकता । हम लोगों ने जब पढ़ना शुरू किया, हिंदी, उर्दू, इंग्लिश (English), फ़ारसी, अरबी, कोई लेंगुएज (language), तो हमको टीचर (teacher) ने एक शक्ल बना कर दी बोर्ड (board) पर और कहा बच्चो, इसका नाम है - 'क', 'ए' (A), 'अलिफ़', और इसकी शकल ऐसे होती है जैसे मैंने बनाया है बोर्ड पर । सब लोग ऐसी शक्ल बनाओ, और जैसे मैं बोल रहा हूँ 'क', ऐसे ही बोलो । तो हमने चुप-चाप मान लिया । एक बच्चे ने भी ये नहीं क्वेश्चन (question) किया इसको 'क' क्यों कहते हैं । और ये 'क' की शक्ल ऐसी ही क्यों होती है ? यानी मन बुद्धि का सरंडर (surrender) कर दिया। और बड़े होते चले गए, बी.ए (B.A), एम्.ए (M.A) कर लिए, कभी नहीं पूछा टीचर और प्रोफ़ेसर (professor) से कि ये 'क' की शक्ल ऐसी ही क्यों होती है। इसको 'क' क्यों कहतें हैं । ये नाइफ़ (knife) में पहले क्यों लिखते हो 'के' (k) । जब बोलना नहीं है तो लिखते क्यों हो । इतने सारे साइलेंट (silent) क्यों हैं इंग्लिश में । कभी 'ए' को 'इ' (e) बोलते हो, कभी 'इ' को 'ए' बोलते हो, सब उल्टा-पल्टा, ये क्या है । कभी नहीं पूछा । शरणागत हो रहें हैं।

(डॉक्टर की दवाई और हमारी शरणागति)

इतने हॉस्पिटल (hospital) है सारी दुनिया में, और उसमे लाखों, करोड़ों पेशेंट (patient) जातें हैं इलाज कराने, डॉक्टर (doctor) ने जैसे कहा - एक बूँद दवा लेना एक चम्मच पानी में डालकर, तीन बार पीना। मन बुद्धि का सरंडर कर दिया । डॉक्टर साहब, मैं इतना बड़ा शरीरधारी, एक बूँद दवा से क्या होगा ? ये किसी ने नहीं पूछा । सब ने डॉक्टर की बात मान ली सेंट परसेंट (cent percent) । देखो, वर्तमान काल में इतना डुप्लिकेट (duplicate) गलत दवाएं बन रही हैं, लेकिन सब अपना दवा लेके, जो लिखा है किसी ने खा रहें हैं, मरें, चाहे जियें । सब के मन बुद्धि की शरणागति है।

(बैंक में पैसा जमा करते समय हमारा विश्वास)

ये अरबों का कारोबार हो रहा है बेंक (bank) में, हम उस छेद से एक लाख, एक करोड़ दे देते हैं, ये बाबूजी, रसीद बना दो । और वो बना रहा है आराम से अपना, गिन रहा है । हमको विश्वास है बना देगा । अगर हम कहें, क्यों जी, तुम रुपया कहीं कम बताओ, पहले रसीद दो। और वो कहे, पहले रुपया दो जी, मैं रसीद दूं, तुम लेके चलते बनो ! तो संसार में कोई काम ही नहीं होगा। हर जगह हम विश्वास करतें हैं।

(क्या यही मेरा असली बाप है?)

किसी बेटे ने ये सवाल किया अपने बाप से कि तुम हमारे बाप हो, क्या सबूत है, मैं कैसे मान लूं ? कहीं मेरी माँ करेक्टरलेस (characterless) हो गयी हो ! प्रूफ़ (proof) दो । तो बाप बिचारा क्या प्रूफ़ देगा । मैं कहता हूँ, बस । कहता हूँ ? अरे, आप तो हज़ारों झूठ बोलते रहतें हैं, एक झूठ ये भी हो सकती है ! नहीं, हम सब लोग मानतें हैं, पक्का मानतें हैं । बाप ख़राब है, अच्छा है, वो अलग बात है, है बाप । है ये हमारी माँ। अरे! बाप को छोड़ो, माँ तो कम से कम वही है, जो असली है, लेकिन हमको तो नहीं पता है ! हमें कोई याद है क्या हम जब माँ के पेट में थे। अरे कोई बतावे, कि हाँ, हमको याद है जब हम उल्टे टंगे थे तो । या पैदा होते समय वाली हमारी अवस्था क्या थी वो हमको याद है । अरे! साल, दो साल चार साल की उम्र की भी कोई पता नहीं है हमको। सब जगह हम मानतें जा रहें हैं।

तो ऐसे ही ये तो प्रत्यक्ष जगत की बात मैं बता रहा हूँ । और जो परोक्ष जगत की बात है, भगवान् के एरिया (area) की, उसका तो हमको अनुभव नहीं है । तो बिना मन बुद्धि के सरंडर किये हम एक कदम नहीं चल सकते । जैसे मान लो, हम किसी को गाली देतें हैं, तो पहले गुस्सा आता है । और झापड़ लगातें हैं, तो बड़े ज्यादा गुस्से में जब होतें हैं, तब लगाते हैं। और मर्डर (murder) करतें हैं, तो गुस्से की पराकाष्ठा जब हो जाती है, फ़ांसी हो जाय भले ही । हाँ । लेकिन उस एरिया (area) में तो और बात है । हज़ारों मर्डर करनेवाला महापुरुष बिना गुस्से के हैं ।

ये अर्जुन है, ये हनुमान जी हैं, लंका जला दिया । गुस्से का नाम नहीं है उनके पास तो । वो तो माया से परे हैं । भगवान् शंकर के अवतार हैं हनुमान जी। और इतिहास में तो बड़ी-बड़ी बातें हैं - सनकादिकों ने शाप दे दिया, दुर्वासा ने शाप दे दिया, शंकर जी ने कामदेव को भस्म कर दिया गुस्से में । ये बड़े-बड़े भगवान् भी गुस्सा करतें हैं ? वो चक्र लेकर श्रीकृष्ण दौड़े भीष्म पितामह को मारने, दांत दबाके, सीना तानके, भौंह तानके ! भीष्म पितामह मुस्कुराने लगे, वाह वाह वाह वाह, क्या बढ़िया झांकी है ! यानी गुस्से की एक्टिंग (acting) । क्या पिक्चर (picture) वाले कोई कर सकतें हैं ऐसा ? अन्दर नहीं है और बाहर क्रिया हो रही है । काम रहित हैं, बच्चें हो रहें हैं । लोभ रहित हैं, करोड़ों वर्ष राज्य कर रहें हैं सारी पृथ्वी पे, ध्रुव, प्रहलाद, अम्बरीश, बड़े-बड़े महापुरुषों के दादा । तो ये सब चीज़ें जब तक हम समझेंगे नहीं और भगवान् से प्रेम करने चलेंगे, तो ये हमको वापस अपने एरिया में पहुंचा देंगे । ये श्रीकृष्ण भगवान्-वगवान् नहीं हैं, ये तो देखो तो सोलह हज़ार एक सौ आठ ब्याह कर रहें हैं, ये माँ के लिए रो रहें हैं गोद के लिए, ऐसे थोड़े होतें हैं भगवान् । भगवान् तो आनंदस्वरुप होतें हैं, उनको कुछ नहीं चाहिए, ये तो रोटी के लिए रो रहें हैं, मक्खन के लिए रो रहें हैं, गोद के लिए रो रहें हैं । बाक़ायदा रो रहें हैं आंसू बहाके । पिक्चर वाले तो खाली एक्टिंग करतें हैं, यहाँ तो फैक्ट (fact) सब हो रहा है बिलकुल । बड़े-बड़े ज्ञानी फ़ैल (fail) हो गए अवतार काल में, या महापुरुषों के काल में । जब वो चले गए, तो ‘हरे राम हरे राम, राम राम’ । और तुलसीदास भी महापुरुष थे, सूरदास भी महापुरुष थे । और जब सूरदास यहाँ थे, जब वो कीर्तन करते थे वृन्दावन में, तो हम लोग देखते थे - ये देखो, ये वेश्यागामी, गुंडा, आजकल ‘राधे राधे’ कर रहा है । हमलोगों ने यों कहा था । अरे, एक दिन गुंडा था, अब तो महापुरुष हो गया ! अरे जाओ जी, क्या महापुरुष हो जाएगा कोई वेश्यागामी ! हम नहीं समझ सकते जब तक हम उस क्लास (class) में न जाए। इस पॉइंट (point) पर ध्यान दो । जब तक हम उस क्लास में न जाए, नहीं समझ सकते ।

(मै दोनों में से किसका बेटा हूँ)

छोड़िये बड़ी-बड़ी बात, हम आपको गधे की अकल से समझाते हैं । एक चार-पांच बरस का बच्चा है । कई बच्चे बैठे, मीटिंग (meeting) करने लगे। क्यों जी, हमको पापा (papa) भी कहते हैं बेटा, और मम्मी (mummy) भी कहती है बेटा, तो हम दोनों के बेटे कैसे हैं ? किसी एक के बेटे होंगे ! सब बच्चे मीटिंग कर रहें हैं। उन्होंने निश्चय किया चलो आज पापा, मम्मी से पूछेंगे । गये, अपने-अपने पापा से पूछे - पापा, हमको आप बेटा कहतें हैं। हाँ, हाँ, है, बेटा तो कहतें हैं, क्या हुआ ? तो मम्मी भी कहती हैं बेटा। हाँ, हाँ, उनका भी बेटा है । ऐसा कैसे ? अब बाप क्या बोलेगा | बोले, कोई फिलोसफ़र (philosopher) का बाप हो, समझा दे उस बच्चे को । क्योंकि वो काम दोष से रहित है, कैसे समझाएगा ? शब्द बोलने से समझ में नहीं आ सकता । नीम के कीड़े को रसगुल्ले के स्वाद का आईडिया (idea) कैसे दोगे । वो तो मीठी चीज़ कभी खाय ही नहीं । बेटा, जब बड़ा हो जाएगा न, तो समझ जाएगा। क्या बड़ा हो जायगा, क्यों नहीं समझ सकते ? आपको समझाना नहीं आता। अच्छा, ठीक है बाबा, नहीं आता, जा । तो अपनी बीवी की तरफ देखकर पापा हँसता है - देखो बेवक़ूफ़ को, क्या क्वेश्चन करता है । अब इसको मैं कैसे समझाऊँ ?

(एक दिन मानना पड़ेगा)

तो ऐसे ही भगवान् के एरिया की अलौकिक, बुद्धि से परे वाली बात हम नहीं समझ सकते, क्योंकि हमको अनुभव नहीं है, हम ऐसा कर नहीं सकते, इसलिए हम उसको मानते नहीं है अपने स्टेनडर्ड (standard) से । तो जब हम ये समझ ले, फ़िलोसफ़ी (philosophy) में कि उस क्लास में ऐसा होता है । देखो, आज की साइंस (science) के अनुसार लोग जातें हैं आकाश को उड़कर के और आकाश में चलतें हैं । लेकिन आज से सौ वर्ष पहले कोई कहता कि लोग आसमान में चल सकतें हैं । बेवक़ूफ़, आसमान में चल सकतें हैं । आसमान में कैसे चलेंगे ? अरे, ज़रा एक पेड़ से कूद तो ! चलेगा आकाश में ? अब आजकल आपलोग ? हाँ हाँ जी, वो एक ऐसा एरिया है कि उस ऊँचाई को जाने के बाद फिर आकाश में आप चल सकतें हैं । अब आप मानने लगे । तो ऐसे ही भगवान् के एरिया की बातें उस क्लास में जाने पर प्रेक्टिकल (practical) अनुभव में आयगा। उसके पहले मानना पड़ेगा । मानो । आज के वैज्ञानिक क्या करतें हैं ? पिछले वैज्ञानिकों की बात मानकर आगे चलतें हैं । अगर पिछले वैज्ञानिकों की बात न माने, और फिर से शुरू करें वो, तो हमेशा वहीं के वहीं खड़े रहेंगे । इसलिए मन बुद्धि का समर्पण करना होगा । इसी का नाम है महापुरुष की बुद्धि में बुद्धि जोड़ना। ये जो दो अंगुल की खोपड़ी पर इतना अहंकार करते हो इसको संसार में लगाओ, भगवान के एरिया में नहीं। वहाँ मन बुद्धि का पूर्ण समर्पण करना ही होगा।


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