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माया और योगमाया में क्या अंतर है?


   ये दो शब्द सुनाई पड़ते हैं शास्त्रों में - माया और योगमाया। जीव के ऊपर माया का आधिपत्य है-

अस्मान्मायी सृजते विश्वमेतत् तस्मिन्श्चानो मायया संनिरुद्धः

                           (श्वेताश्वतरोपनिषत् ४-९) 

 वेद कहता है। और भगवान् के पास योगमाया है-

 नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः।  (गीता ७-२५) 

   भगवान् कहते हैं, मैं किसी को नहीं दिखाई पड़ सकता क्योंकि मैं योगमाया के परदे में रहता हूँ। अर्थात् जीवों के ऊपर माया का परदा और भगवान् के ऊपर योगमाया का परदा। ये योगमाया शब्द का अर्थ क्या है? योग माने अपनी पर्सनैलिटी में रहे, अपने स्वरूप में रहे और माया का कार्य करे इन्द्रियों से; लेकिन स्वयं माया के अण्डर में रहने वाले का जैसा कर्म होता है ऐसे ही योगमाया के द्वारा भी सब कर्म होता है। ठीक वैसे ही सेन्ट परसेन्ट। 

 . जैसे- जो जीव माया के अण्डर में होता है उसमें काम होता है, क्रोध होता है, लोभ होता है, मोह होता है, ईर्ष्या होती है, अहंकार होता है ये सब बीमारियाँ होती हैं और इनके कार्य भी होते हैं। उसके अंदर काम है तो वो संसारी विषय भोग करता है, बच्चे पैदा होते हैं; क्रोध है तो वो मारधाड़ करता है या मर्डर भी कर देता है; लोभ है तो लखपती, करोड़पति, अरबपति बनने को पागल हो रहा है। ये सब बीमारियाँ जैसे माया के अण्डर में रहने वाले के साथ होती हैं ऐसे ही योगमाया वाले के द्वारा भी होती हैं।

      जैसे ब्रह्मा, विष्णु, शंकर सब बड़े-बड़े वशिष्ठ, जनक, विश्वामित्र, भरद्वाज, गौतम, कपिल, कणाद तमाम बड़े-बड़े योगीन्द्र-मुनीन्द्र, महर्षि वेदव्यास भगवान के अवतार, पाण्डव अर्जुन और सबसे बड़े महापुरुषों की दादी गोपियाँ, जिनके लिए नारद भगवान् के अवतार, उन्होंने अपने नारद भक्ति सूत्र में एक ही एग्जाम्पिल दी- 'यथा ब्रज गोपिकानाम्' सारे महापुरुषों में टॉप करती हैं ब्रजगोपियाँ। तो ये सब गृहस्थ में थीं। जितना मैं नाम गिना रहा हूँ नाइन्टी नाइन पवाइन्ट नाइन परसेन्ट महापुरुष सतयुग से लेकर और आज तक सब गृहस्थ में हुए, इनकी स्त्री थी, बच्चे थे, नाती पोते थे।

    अब प्रश्न आता है कि ये बड़े-बड़े महापुरुष जिनको पहले भगवत्प्राप्ति हो गई प्रह्लाद, ध्रुव, सतयुग के महापुरुष, नृसिंह भगवान् का अवतार हुआ जिनके लिए। और उसके बाद फिर प्रह्लाद ने ब्याह किया फिर बच्चे हुए, उन्हीं की सन्तान हैं विरोचन और बलि वगैरह आप लोगों ने नाम सुने होंगे। तो ये काम रहित होकर इनके बाल-बच्चे हो रहे हैं। हम मायाधींन जीव सोचते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है? हमारे लिए इम्पॉसीबिल । 

 ( कौरवों की हत्या करते अर्जुन )

   काम रहित हो और बाल बच्चे हो रहे हैं; क्रोध रहित है महापुरुष गीता ज्ञानी अर्जुन, करोड़ों मर्डर कर रहा है, एक दो चार नहीं। हनुमान जी करोड़ों मर्डर , ब्रह्म हत्या कर रहे हैं लंका में और सर्वत्र 'सीयराम मय सब जग जानी' सीताराम को देख रहे हैं सब जगह और मर्डर भी कर रहे हैं। प्रह्लाद एक मन्वन्तर राज्य कर रहे हैं (करोड़ों वर्ष)। हम लोग भी उस समय में रहे होंगे और किसी ने कहा होगा ये प्रह्लाद महापुरुष हैं। तो हम लोग कहते हैं कि ये काहे के महापुरुष हैं! इनके स्त्री है, बाल बच्चे हैं, और ये करोड़ों वर्ष से राजा बने हैं, इनका पेट नहीं भरा, वैराग्य नहीं हुआ सारी पृथ्वी के राजा। ये ध्रुव जी हैं, ये ऋषभ हैं, सौ-सौ पुत्र!

( महारास में श्रीकृष्ण संग गोपिकाएं )

    तो भगवान् के अवतारों में भी अधिकांश सब गृहस्थ और खासतौर से राम कृष्णावतार की भक्ति हमारे देश में होती है। तो राम को भी आप जानते हो, सीतापति हैं; लक्ष्मण के भी स्त्री, भरत के भी, शत्रुघ्न के भी और कृष्णावतार में बलराम के भी। श्रीकृष्ण के तो सोलह हजार एक सौ आठ और एक-एक स्त्री के दस-दस बच्चे और श्रीकृष्ण का नाम आत्माराम। आत्माराम माने केवल अपने में तृप्त। परीक्षित ने शुकदेव से प्रश्न किया कि श्रीकृष्ण भगवान हैं और इन्होंने पराई स्त्रियों के साथ रास क्यों किया? ये तो महापाप है, वेद में कहा गया है। तो उन्होंने उत्तर दिया। देखो-

धर्मव्यतिक्रमो दृष्टि ईश्वरानां च साहसम्।

तेजीयसां न दोषाय वह्नेः सर्वभुजो यथा।।   (भागवत १०-३३-३०) 

   परीक्षित! वहाँ बुद्धि मत ले जाओ, उनके कार्य योगमाया से होते हैं। योगमाया भगवान् की एक पॉवर है। वो क्या करती है- 'कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुं समर्थः' जो चाहे करे, जो चाहे न करे, जो चाहे उलटा करे। ऐसी शक्ति होती है उसमें, उस शक्ति से भगवान् और महापुरुष कार्य करते हैं। इसलिए वहाँ बुद्धि न ले जाना, नामापराध हो जायेगा और तुम्हारी सारी साधना जीरो हो जाएगी। सर्वनाश हो जाएगा परीक्षित। मेरा भागवत सुनाना ही व्यर्थ हो जाएगा-

यत्पादपंकजपरागनिषेवतृप्ता योगप्रभावविधुताखिलकर्मबंधाः।

स्वैरं चरन्ति मुनयोऽपि न न्ह्यमानास्तस्येच्छ्याऽऽत्तवपुषः कुत एव बंधः।।

                   (भागवत १०-३३-३५) 

    अरे! मूर्ख परीक्षित! जब उनको प्राप्त कर लेने वाला ही माया से परे होकर योगमाया के द्वारा कार्य कर रहा है, इतिहास भरा पड़ा है, तो भगवान् के लिए तू प्रश्न कर रहा है? उनके कार्य योगमाया से होते हैं इसलिए वो अपनी पर्सनैलिटी में रहते हैं। हैं काम रहित, क्रोध रहित, लोभ रहित लेकिन कार्य करते हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह का, पराकाष्ठा का। अरे! अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड का प्रलय करते हैं भगवान। 

( राजा चित्रकेतु )
     और महापुरुषों ने तो बड़े-बड़े रिकॉर्ड तोड़े हैं। हमारे यहाँ ऐसे ऐसे महापुरुष हुये हैं- चित्रकेतु, उनके एक करोड़ स्त्री! हाँ, कान खड़े हो जाएंगे आपके सुनकर। एक करोड़ स्त्री और एक को भी बच्चा नहीं! वो ऋषियों की शरण में गये, एक बच्चा तो दे दो हमको, कोई बच्चा ही नहीं हमको। 

( पांडव संग द्रोपदी )

   पाण्डव 'उत्पत्ति पाण्डु सुतन की करनी, सुनि सत पन्थ डर् यो।' तुलसीदास कहते हैं कि पाण्डव कैसे पैदा हुये यही निन्दनीय है। फिर पांचों भाइयों ने एक श्रीमती बना लिया 'द्रोपदी'। बोलो कितना बड़ा पाप है ये! बड़े भाई की बीबी भी वही, छोटे भाई की भी वही! राम तो कह रहे हैं-

अनुज वधु भगिनी सुत नारी।

सुन शठ ये कन्या समचारी।

    छोटे भाई की बीबी के प्रति जो दुर्भावना करे उसको मार डालना चाहिए और यहां प्रैक्टिकल बीबी बनाये हैं पाँचों पाण्डव द्रोपदी को और सब महापुरुष हैं और द्रोपदी भी महापुरुष । भगवान् भाग के आये अवतार लेकर चीरहरण में।

    तो योगमाया का कार्य, माया की तरह होता है- 'क्रिया सर्वापि सैवात्रं परं कामो न विद्यते।' वल्लभाचार्य ने कहा। क्रिया सब वैसी ही होती है, संसारी मायाधीन की तरह लेकिन वो माया से परे होते हैं। इतना अन्तर होता है। 

    देखो, ये संसार में भी आप लोग करते हैं- तेनैवालिंगिता कान्ता: ये छाती है आपकी, इसी छाती से आप माँ को चिपटाये होंगे, बहिन को चिपटाए होंगे, बेटी को चिपटाये होंगे और बीबी को चिपटाये होंगे। छाती वही है। लेकिन सबको चिपटाने में भेद है। माँ के चिपटाने में, बेटी के चिपटाने में, ये सब अलग भावना हुई और बीबी को चिपटाने में अलग भावना हो गई । क्रिया एक-सी दिख रही है लेकिन मन का कार्य अलग-अलग हो रहा है। तो जब आप ही इतना कर लेते हैं, तो भगवान और महापुरुष के लिए क्या सोचना है। वो तो योगमाया से कार्य करते हैं। इसलिए योगमाया का मतलब योग रहे अपनी पर्सनैलिटी में। पतन की बात सोचने में न आवे। इसीलिये भगवान् ने उद्धव से कहा देखो-

आचार्यं मां विजानीयान्नावणमन्येत कर्हिचित्।

न मर्त्यबुद्ध्यासूयेत सर्वदेवमयो गुरुः।।  (भागवत ११-१७-२७) 

    देखो महापुरुष के शरण में जब जाओ तो महापुरुष के मायिक कार्य को देखकर ये मत सोच लेना ये मायिक है, अन्यथा नामापराध हो जाएगा। तुम मर जाओगे। ये तो हमारी ही तरह खाता है, पीता है, सोता है, इसके भी बाल-बच्चे हैं। ये तो सब हमारी तरह है। ये काहे का महापुरुष है! ऐसा धोखा खा जाओगे। तो- 'न मर्त्यबुधयासूयेत' मनुष्य की बुद्धि मत लाना, मायाधीन वाली। माया के अण्डर वाली। ये योगमाया से कार्य करते हैं भगवान् और भगवान् के जन जो भगवान् को प्राप्त कर लेते हैं और फिर इन दोनों के बीच में एक और होते हैं उन्हें कहते हैं कर्मयोगी।

( दो व्यक्तित्व को दर्शाती योगमाया  )

   मन का अटैचमेंट न हो और कर्म करे बिना योगमाया के, तो भी उसको कर्म का फल नहीं मिलेगा। जैसे- अप्रैल फूल बनाते हैं आप लोग पहली अप्रैल को और कोई मुकदमा दायर करे कि इसने हमको बेवकूफ बनाया और कहा कि हमारे यहाँ आओ हमारे यहाँ दावत है और शादी है और ये है, वो है। हम इतने दूर से आये और परेशान हुये और यहाँ कुछ नहीं था। ताला लगा था घर में उसके। तो कोर्ट कहती है- "अरे! पहली अप्रैल है, इसको माइंड नहीं करते। इसके मन में दुर्भावना नहीं है, मजाक है।" ससुराल में आप लोगों को कितनी गालियाँ मिली होंगी। गाँव में तो गाते हैं गाली दे देकर, बाकायदा ढोल बजा के, लेकिन लोग हँसते रहते हैं कोई फील नहीं करता क्योंकि वो जानते हैं कि दुर्भावना नहीं है।

   तो निष्काम कर्म करने वाले का ही ये दर्जा हो जाता है कि वो कार्य करे माया का और स्वयं माया से परे रहे। जैसे- कमल के पत्ते पर जल। तो फिर योगमाया से कार्य करने वाले भगवान और महापुरुष के बारे में तो सोचना ही नहीं है। जहां सोचे मरे। बड़े-बड़े योगीन्द्र- मुनीन्द्र को भ्रम हुआ है भगवान् के अवतार काल में और माया का रोग लगा है। जब तक भगवत्प्राप्ति न हो जायेगी डेन्जर है। फिर गृहस्थी बेचारा क्या जाने?

    देखो, एक पाँच साल का बच्चा अपनी माँ से पूछता है कि "मम्मी मैं तुम्हारा बेटा हूँ कि डैडी का?" बड़ी परेशान है माँ, क्या कहें क्या जवाब दें। "अरे! तू मेरा भी बेटा है, डैडी का भी है।" "दोनों का कैसा हूँ? हमको समझाओ मम्मी।" अब मम्मी कैसे समझावे। वो पाँच वर्ष का बच्चा कामदोष रहित, उसको कैसे समझाया  जा सकता है। शब्द रटा दो भले ही, और क्या समझेगा वो। फीलिंग में नहीं है उसके काम। वो  नहीं समझ सकता। ऐसे ही मायाबद्ध जीव बुद्धि के द्वारा ये नहीं समझ सकता कि कैसे अर्जुन, प्रह्लाद, ध्रुव वगैरह ये बड़े-बड़े महापुरुष माया का कार्य करते हुए माया से परे रहे; इनको गुस्सा आया ही नहीं है और करोड़ों मर्डर किये । हम तो एक झपड़ लगाते हैं तो पहले गुस्से में पागल हो जाते हैं, बाद में झापड़ लगाते हैं किसी को। और ये, इतने मर्डर किए और सब जगह श्रीकृष्ण को देख रहे हैं अर्जुन, राम को देख रहे हैं हनुमान जी।

    ये बात मायाबद्ध अनुभव रहित होने के कारण समझ नहीं सकता, उसको मान लेना चाहिए कि वो कार्य योगमाया के द्वारा है। भगवान् की पॉवर है उसके पास। जैसे, एक मदारी के पास मंत्र की ऐसी पॉवर होती है, साँप ने काटा और असर नहीं हुआ। लेकिन हर एक कटवा लेगा कोबरा से तो मर जाएगा। वो शक्ति जब आप में आ जाएगी भगवत्प्राप्ति  कर लेंगे तब आप कहेंगे कि अब समझ में आया, योगमाया की पॉवर क्या होती है। अतएव माया और योगमाया का ये संक्षेप में भेद है।

       -   जगद्गुरुतम श्री कृपालु जी महाराज

             [स्रोत: प्रश्नोत्तर भाग-1,  प्रश्न-1]


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