प्रश्न : दान इस मानव देह में जरूरी बताया गया है लेकिन दान किसको देना चाहिए जिससे ज्यादा लाभ हो?
~ श्री जगद्गुरु कृपालु जी द्वारा उत्तर ~
चार तरह के पात्र होते हैं - तामसी व्यक्ति को दान करोगे तो तामस फल मिलेगा नरक, राजसी व्यक्ति को दान करोगे तो मृत्युलोक मिलेगा, संसार का वैभव, और सात्विक व्यक्ति को दान करोगे तो स्वर्ग मिलेगा और महापुरुष को दान करोगे तो भगवान् का फल मिलेगा। ये चार प्रकार के फल हैं।
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| ( दान के चार क्षेत्र ) |
अब आप दूसरा सवाल करेंगे- हमें क्या मालूम कौन तामसी है, कौन राजसी है, कौन सात्विक है, और महापुरुष है तो ये जिम्मेदारी आपके ऊपर है। तुमको मालूम होना चाहिए, प्रयत्न करना चाहिए मालूम करने का, अन्धे बनकर के दान नहीं करना चाहिए।
देखो, एक लड़की की शादी करते हो तुम, अपनी लड़की की तो दुनिया भर की इन्क्वायरी करते हो- ये कहाँ का है, कितना पढ़ा है, कैसे है, और इसका करैक्टर कैसा है, इसका बाप कौन है? तब एक लड़की को दान करते हो। तो जब परमार्थ सम्बन्धी बुद्धि है तो फिर समझ-बूझ करके दान करना चाहिए और संसार में सब जगह करते भी हो समझ बूझ के। अब बुद्धि जितनी है उसके अनुसार करो। उसके जिम्मेदार भगवान नहीं हैं।
तुम जहाँ दान करोगे उसका फल तुमको मिलेगा, उस पर्सनैलिटी के अनुसार। अब तुम कहो कि हमें स्वर्ग चाहिए, तो सात्त्विक को दान करो।हमें मृत्युलोक चाहिए, तो राजसी को दान करो। हम देखना चाहते हैं, नरक कैसा होता है, तै तामसी को दान कर दो।
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| ( राजा नृग का गौ-दान ) |
एक राजा नृग हुए, बहुत दान करते थे। करोड़ों गायों का दान किया लेकिन एक गाय जिसको दान किया था उसके खूंटे से भाग आई और राजा साहब की गायों में मिल गई। दूसरे दिन राजा साहब से एक ब्राह्मण आया गाय माँगने, वही गाय उसको दान दे दी। अब वो जो ब्राह्मण को पहले दी थी, उसने इस गाय को पहिचान लिया। दोनों का एक ही गाँव में घर था। उसने कहा, ये गाय तो हमको दान दिया था राजा ने और मैं पहचानता हूँ। तुमको कैसे मिली ये? उन्होंने कहा, हमको राजा ने दान दिया। उसने कहा, ये नहीं हो सकता, यह तो हमारी गाय है।
अब दोनों गए राजा के पास। पहले वाले ने कहा- आपने हमको दान दी थी यह गाय और ये कहता है हमको दान दी है तो राजा ने कहा कि भई देखो! ऐसा है गलती हो गई होगी वह गाय चली आई होगी हमारी गायों के झुंड में फिर से। वह हमको नहीं मालूम था हमने दान दे दिया, तुमको दुबारा। भई, इसी ब्राह्मण को दे दो तुम, तुमको दुधारी गाय देते हैं हम, दस-बीस गाय ले लो। उन्होंने कहा- नहीं, ये तो प्रतिष्ठा का प्रश्न है, हम ऐसा नहीं कर सकते। हमको आपने गाय दान दिया है बाकायदा पढ़ करके मंत्र। अब तो हम इसको नहीं देगें उस ब्राह्मण को। उस ब्राह्मण से कहा, भई आप दूसरी गाय ले लो, उसने कहा ये नहीं हो सकता। हमको जो गाय दान में दिया है आपने, वही लेंगे।
कोई तैयार ही नहीं हुआ तो राजा ने फिर फैसला किया कि पहले ब्राह्मण को गाय दे दो क्योंकि यह तो भूल हो गई कि यह दुबारा आ गयी है गाय। कायदे से तो उसी की गाय है तो दूसरे ब्राह्मण ने शाप दे दिया कि जा तू गिरगिट हो जा। तूने दान देकर के और बाद में वापस लेने की बात की। गिरगिट हो गया। फिर कृष्णावतार में उद्धार किया उसका।
तो ये दान हो,चाहे यज्ञ हो इसमें बड़े- बड़े नियम होते हैं। नियम का उल्लंघन करने पर दण्ड मिलता है। खाली भगवान् और महापुरुष के यहाँ दण्ड नहीं है, वहाँ श्रद्धा से, अश्रद्धा से, जैसे भी करो, सब ठीक । उनके यहाँ गुस्सा नहीं है, दण्ड नहीं देते, वो लोग दोनों और बाकी देवता, लोग या मनुष्य लोग इनके यहाँ तो दण्ड विधान है। यहाँ घपड़- सपड़ नहीं चलेगा।
- जगद्गुरुतम श्री कृपालु जी महाराज
🌷 राधे राधे 🌷


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