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संक्षिप्त तत्वज्ञान: विविध विषयों पर

ब्रह्म, परमात्मा और भगवान - क्या है अंतर?
वदन्ति तत्तत्त्वविदस्तत्त्वं यज्ज्ञानमद्वयम्। 
ब्रह्मेति परमात्मेति भगवानिति शब्दयते॥  (भागवत१.२.११)

एक का नाम ब्रह्म
एक स्वरूप का नाम परमात्मा
एक का नाम भगवान। 
भगवान तीन नहीं। 
भगवान तो एक ही है
उनके तीन स्वरूप हैंकर्म के अनुसार। 
(विश्वरूप)

ब्रह्म उसे कहते हैं
जिसमें थोड़ी-सी शक्ति प्रकट हो। 
शक्तियाँ सब हैंलेकिन प्रकट नहीं होतीं। 
आप लोगों ने देखा होगा गेहूँचनामटरअनाज।  हाँ।  ये जब तक बोरे में बन्द होता है,  और आप देखते हैंतो क्या देखते हैं?  ये गेहूँ हैं इतना बड़ा।  हाँ।  और जब खेत में पड़ता है तो अंकुर बन गया। अब पेड़ बन गयाऔर पत्ते आ गयेऐ सैंकड़ों फल लग गये। वो गेहूँ नहीं है कईगेहूँ तो वही एक बीज है,  जो साल भर से बोरे में बन्द था। तो ऐसे ही भगवान के तीनों स्वरूप हैंसबमें सब शक्ति हैलेकिन प्रकट नहीं होती। 
ब्रह्म में दो शक्ति प्रकट होती हैं। अपनी रक्षा और आनन्द स्वरूप। बस। फिर परमात्मा साकार बन जाता है। 
परा शक्ति से। ध्यान देनावही शक्ति जो पर्सनल पॉवर है। 
उससे रूप बन गयाशरीर बन गया। 
अब सब चीजें होने लगीं। हाँ। तमाम शक्तियाँ प्रकट हो गईं। लेकिन लीला नहींपरिकर नहीं। फिर भगवान का स्वरूप जो असली हैश्रीकृष्ण काउसमें सब शक्तियाँ प्रकट होतीं हैं। और चार गुण तो श्रीकृष्ण में ऐसे हैंजो ब्रह्माशंकरकिसी में नहीं।"

   वो चार गुण जो एक्स्ट्रा हैंवे यही हैं लीला-माधुरीप्रेम-माधुरीरूप-माधुरीमुरली-माधुरी। तो इन चारों का रस आपको आपके प्रेम की मात्रा के अनुसार मिलेगा।

— जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज


क्या भगवान हर जगह हैं?
रामायण के अनुसार-
प्रभु व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रकट होहिं मैं जाना।
   अर्थात भगवान् समान रूप से सर्वत्र रहते हैं, और यदि कोई असमान यानी विशेष रूप से साकार-रूप में चाहे तो भी सर्वत्र रह सकते हैं। फिर भी जिस धाम से विशेष प्यार हो उसको अपना लेना चाहिए। भेद-भाव न रखना चाहिये।
   इसी प्रकार उनके भक्तों में भी समझ लेना चाहिये कि उनके सभी भक्त एक से हैं। हमें जिस भक्त के द्वारा विशेष लाभ हो, उसको अपना लेना चाहिए, अन्य में दुर्भावना न रखनी चाहिये।
   यह प्रमुख स्मरणीय है कि भगवान् के अनन्त नाम, अनन्त रूप, अनन्त लीलाऍं, अनन्त धाम एवं अनन्त जन हैं, जो परस्पर सब के सब एक ही हैं। सब में सब रहते हैं। अतएव किसी एक के अवलंब से भी ईश्वरप्राप्ति हो सकती है। उनमें परस्पर भेद-भाव रखना नामापराध है। हॉं, स्वयं की रूचि जहॉं पर हो उसका सेवन कर लें। बस, इससे अधिक बुद्धि का प्रयोग न करें।

- जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
[ उद्धरण- प्रैक्टिकल साधना पृष्ठ संख्या 53-54 ]

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अनन्यता 
   कुछ लोग भगवान् से भी प्रेम करते हैं किन्तु साथ ही अन्य देवताओं या संसारियों से भी प्रेम करते हैं, अतएव भगवत्प्राप्ति नहीं हो पाती। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि एक मन है, उसमें एक श्यामसुन्दर सम्बन्धी ही विषय रहे, अन्य मायिक सत्त्व, रज, तम सम्बन्धी तत्त्व न आने पायें। 
  
   आजकल प्रायः उपासक लोग अनेक देवी-देवताओं की उपासना साथ-साथ करते रहते हैं। भगवान की भी करते हैं, और यदि अवसर देखा तो कब्रिस्तान की भी कर लेते हैं। यह सब धोखा है। जब समस्त मायिक एवं अमायिक शक्तियों का मूल अधिष्ठान भगवान् ही है तो पृथक्-पृथक् उपासना क्यों की जाय? यह सिद्धांत समझ लेना चाहिये कि सम्पूर्ण शक्तियों की उपासना करने पर भी भगवान् की उपासना नहीं मानी जायगी, किन्तु एक भगवान् की उपासना कर लेने पर सम्पूर्ण शक्तियों की उपासना मान ली जायगी।
येनार्चितो हरिस्तेन तर्पितानि जगंत्यपि।
रज्यंते जन्तवस्तत्र स्थावरा जंगमा अपि।  (भक्ति रसामृत सिंधु) 
   अर्थात् जिसने हरि की उपासना कर ली, उसने सबकी कर ली, सबकी तृप्ति हो गयी।

- जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
[ उद्धरण- प्रैक्टिकल साधना पृष्ठ संख्या 18-19 ]

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राम और कृष्ण क्या हैं अलग
( राम = कृष्ण )
   संसार में प्रायः राम, कृष्ण दो ही अवतारों के अनुयायी अधिक होते हैं, जिसका प्रमुख कारण यह नहीं है कि यह दो अवतार बड़े-बड़े हैं।बड़े-छोटे का प्रश्न ही गलत है। वरन् यह कारण है कि राम, कृष्ण इन दोनों अवतारों में लीलाऍं अधिक हुई हैं, जिन लीलाओं से साधकों का मन शीघ्र ही ईश्वर में लग जाता है। मन लगाने के दृष्टिकोण से ही इन दोनों अवतारों को विशेष महत्व दिया गया है। वस्तुतस्तु किसी अवतार में भी कमी-बेशी नहीं है। देखिये, आपने केवल चीनी की मिठाइयॉं देखी होंगी। 
    बच्चों के लिए दीपावली आदि के अवसर पर केवल चीनी के खिलौने बनाये जाते हैं, यथा-चीनी का घोड़ा, चीनी का हाथी, चीनी का साहब, चीनी की मेम इत्यादि। बच्चे भोलेपन के कारण अवश्य झगड़ते हैं 'हम तो साहब लेंगे' दूसरा कहता है 'हम घोड़ा लेंगे', किन्तु माता-पिता यह जानते हैं कि चाहे साहब खाओ, चाहे घोड़ा खाओ, सब में मिठास बराबर ही है, यह तो आकृति मात्र का भेद है। इसी प्रकार चाहे जिस अवतार से प्यार करो, सब में  अनन्त शक्तियॉं, अनंत गुण एवं दिव्यता आदि सब बराबर ही बराबर है।

- जगदगुरूत्तम श्री कृपालुजी महाराज 
[ उद्धरण: प्रैक्टिकल साधना, पृष्ठ सं. 47- 48 ]

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प्रश्न: जैसे पुराने कपड़े हैं और खाना खिलाना है गरीब को , इस तरह का भी दान कर सकते हैं संसार में ?
 
   गरीब को खाना खिलाओ या कपड़ा दो या रुपया दो , बात एक है । लेकिन वह गरीब का अंत : करण कैसा है ? वह जैसा भीतर है उसका वैसा फल मिलेगा । नरक भी मिल सकता है , स्वर्ग भी मिल सकता है , अगर वह महापुरुष है तो भगवत्कृपा भी मिल सकती है । उस पात्र के अनुसार फल मिलेगा । कपड़ा हो , खाना हो , दवा हो , कोई भी हैल्प हो , सवाल ये है कि वह आदमी क्या करता है , उसका अंत : करण कितना गन्दा है , कितना अच्छा है ? 
    जैसे मान लो कोई एक डकैत आपके घर पर आया और कहा - मैं बहुत भूखा हूँ । सचमुच भूखा था । तुमने खाना खिला दिया । अब ताकत आ गई एक मर्डर कर दिया उसने । अब तुमने तो खाना खिलाया इसलिए कि वह दुःखी है, भूखा है लेकिन उसका परिणाम उसने ग़लत कर डाला तो तुम भी पाप के हक़दार बनोगे

     इसलिए पात्र के अनुसार ही दान करना चाहिए । कुपात्र में दान करने से खराब फल मिलेगा । अब तुम कहो कि मैं क्या जानूँ ? तो तुमको जानना चाहिए । ऐसे कहने से छुट्टी नहीं मिलेगी । अब देखो ! हमारी दुनियावी गवर्नमेन्ट के कानून कितने आदमी जानते हैं एक अरब में । एक आदमी भी नहीं जानता । एक अरब आदमी की आबादी है भारत में , लेकिन भारत के हर महकमे के हर कानून को एक आदमी कोई याद किया हो , इम्पॉसिबिल । एक ही सब्जैक्ट में , कोई क्रिमिनल का वकील है , वह भी किताब पढ़ता है । लेकिन वह कहता है कि मैं सिविल तो जानता ही नहीं बिल्कुल । मैं पोस्ट ऑफिस के कानून तो बिल्कुल नहीं जानता । यानी एक आदमी भी ऐसा नहीं है एक अरब आदमी में जो अपने देश के हर विभाग के हर कानून को जानता हो । और फिर यहाँ तो करोड़ों अंगूठा छाप हैं हमारे देश में लेकिन अपराध हो जाने पर गवर्नमेन्ट सबको दण्ड देती है बराबर । जज नहीं छोड़ता किसी को कि साहब हम बेपढ़े - लिखे हैं , हम कायदा - कानून क्या जानें , हमको माफ़ किया जाये । न । सबको दण्ड मिलेगा , एडवोकेट होगा उसको भी , अँगूठा छाप होगा उसको भी । तो भगवान् कहते हैं तुमको शास्त्र - वेद की बात जाननी चाहिए । सन्तों के पास क्यों नहीं गये , उनसे क्यों नहीं समझा , लापरवाही क्यों की ? छुट्टी नहीं मिलेगी इससे , दण्ड मिलेगा । तुम्हारी इयूटी है । 

   तुमको मनुष्य शरीर मिला । जब पेट के लिए तुम हजार जगह गये और सबसे नॉलेज इकट्ठा की , तो आत्मा के लिए क्यों नहीं किया ? उसके लिए समय नहीं था । इससे नहीं तुम बच सकते । तुमको हर कानून समझना चाहिए । ट्रेन में सफर कर रहे हो । उसके लॉ पहले समझो । क्या लॉ है ? यही , जिस टाइम ट्रेन आवे उसके पहले पहुँचो , टिकट पहले ले लो । सब बातें अच्छी प्रकार समझ के तब बैठो गाड़ी में । अजी ! हम रुपया तो लिए हैं , टिकट लें या न लें , इससे क्या मतलब ? ये अटकलपच्चू काम न करो । मजिस्ट्रेट की जब चैकिंग हो जायगी तो दस गुना वो जुर्माना कर देगा । तो साहब जल्दी में थे हम तो । जल्दी में थे तो तुमको ऐसा करना चाहिए था कि गार्ड से सर्टिफिकेट ले लेते कि हम यहाँ से बैठ रहे हैं । तो फिर रुपया तुम्हारा काम कर जाता । ऐसा कानून है ? हाँ । तो किसी भी एरिया में जाओ , पहले कानून समझो फिर उसका पालन करो , नहीं तो उसका दण्ड मिलेगा । ये कहने से नहीं छूट होगी कि हम क्या जानें साहब , हम तो पढ़े - लिखे नहीं हैं । जानने से कोई मतलब नहीं । जानना चाहिए था , शास्त्र - वेद का ज्ञान तुमको करना चाहिए था । गुरु के पास जाते , महापुरुष के पास जाकर सब समझते तो लापरवाही न करते ।

     -   जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज

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