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भारत में इतना भष्टाचार क्यों?

( भारत में बढ़ता भ्रष्टाचार क्यों दिख रहा है? )

   लोग प्रश्न करते हैं कि हमारे भारत में भगवान् की भक्ति तो बहुत दिखाई पड़ती है, घर-घर में मन्दिर हैं और यहाँ तो मरने के बाद भी राम नाम सत्य है बोला जाता है। फिर इतना अनाचार, दुराचार, भ्रष्टाचार पापाचार क्यों है?

   हमारे गुरु लोग जो हमारे देश में मँडरा रहे हैं आज बाबाजी बन बन करके कान फूंकते जा रहे हैं लोगों के, चेले बनाते जा रहे हैं लोगों को, धोखा दे रहे हैं, चार सौ बीसी कर रहे हैं। इनका अपराध है, इनका दोष है। इन्होंने बिगाड़ा है। इनको पता ही नहीं है भक्ति करनी किसको है, सब इन्द्रियों से भक्ति करते हैं। 

( इंद्रियों से भक्ति करते लोग )
   आँख से, कान से, रसना से, पैर से, हाथ से। निन्यानवे प्रतिशत लोग, इन्द्रियों से भक्ति करते हैं। पूजा हाथ से, दर्शन मन्दिर में जाकर मूर्ति के या सन्तों के आँख से, श्रवण कान से भागवत सुन रहे हैं, रामायण सुन रहे हैं, मुख से नाम कीर्तन, गुण कीर्तन, पुस्तकें पढ़ते हैं वेद मंत्र या गीता या भागवत या गुरु ग्रन्थ साहब, कोई पुस्तक पाठ करते हैं रसना से, पैर से चारों धाम की मार्चिंग करते हैं। वैष्णो देवी जा रहे हैं, कहीं बद्रीनारायण जा रहे हैं ये सब नाटक करते हैं- हम लोग। ये सब साधना नहीं है ये तो जैसे जीरो में गुण करो, एक करोड़ से तो भी जीरो आयेगा। ऐसे ही इन्द्रियों के द्वारा जो भक्ति की जाती है, भगवान उसको लिखते ही नहीं, नोट नहीं करते, वो तो व्यर्थ की है बकवास है, अनावश्यक शारीरिक श्रम है उपासना, या भक्ति या साधना मन को करनी है।

( हाथ से मंत्र जाप करते लोग )

मन एव मनुष्याणां कारणं बन्ध मोक्षयोः। (पंचदशी )

     बन्धन और मोक्ष का कारण मन ही है, हम मन को तो संसार में लगाये हैं, माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति, धन, प्रतिष्ठा इन सब चीजों में मन को लगाये हैं। उसमें आसक्त हैं और मुख से बोलते है 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव' भगवान तुम ही हमारी माँ हो, तुम ही हमारे बाप हो, तुम ही हमारे धन हो, ये तो हम और झूठ बोल रहे हैं भगवान से क्योंकि हमारे मन की आसक्ति तो संसारी वस्तुओं में है। 

( भगवान को पाने के लिए कितने आसूं बहाए? )

     अपने हृदय पर हाथ धर करके आप लोग सोचिये ये जो जीवन भर साधना करते रहे पूजा पाठ जप इन्होंने भगवान् के दर्शन के लिये कितने आँसू बहाये। आँसू? संसार पाने के लिये संसार के वियोग में तो बड़े आँसू निकले। लड़की की शादी है हाँ, दस लाख, बीस लाख, पचास लाख भी फूँक दिया उसके पीछे और लड़का भी देखा और लड़की को ब्याह दिया, जब जाने लगी तो माँ रोने लगी, बाप रोने लगा। क्यों? क्या हुआ? जा रही है, अरे तुम तो रुपया दे के उसको निकाल रहे हो, घर से तो फिर बात क्या है रोते क्यों हो! आसक्ति है मन की, अरे मर नहीं गयी है वो, वो तो जा रही है ससुराल में तुम तो उसको भेज रहे हो पैसा देकर के। तुम्हें तो खुश होना चाहिये। मन का अटैचमेन्ट है। तो भगवान की उपासना कहाँ हो रही है। धोखा है। 

( भगवान से प्रेम है या बेटी से? क्यों रोने लगे ? )

   ये नाम कीर्तन, गुण कीर्तन, लीला कीर्तन तो बच्चों की बात है जैसे कोई, छोटे से बच्चे को कोई पाठ पढा़वे जबानी लेकिन तत्वज्ञान जिसको हो, थ्योरी की नॉलेज हो तो उसको पहला सबक ये याद करना कि मन से भक्ति करनी है। मन से, प्यार तो सब जानते हैं, पशु पक्षी भी जानते हैं, मनुष्य की कौन कहे, जैसे माँ से, बाप से, बीबी से, पति से, धन से, अपने शरीर तक से आप लोग प्यार करते हैं ऐसे ही तो करना है भगवान् से। कोई नया मन नहीं लगता है, कोई नया तरीका नहीं लिखा है शास्त्र वेद में। कृपालु का चैलेन्ज है, सब वेद शास्त्र मैं जानता हूँ। कोई नई बात नहीं लिखी कहीं, जैसे प्यार संसार से करते हैं ऐसे ही भगवान् से करना है। तुम संसार को अपना मानते हो, बस यही गलती है क्यों अपना मानते हो? अपने को शरीर मानते हो, बस ये पहली गलती आपकी। अपने को शरीर मान लिया। मैं पुरुष हूँ, मैं स्त्री हूँ, मैं ब्राह्मण हूँ, मैं क्षत्रिय हूँ, मैं पंजाबी हूँ, मैं बंगाली हूँ, ये बीमारी पाल लिया आपने। 

( जाति, वंश. रंग, धर्म, नस्ल, वर्ग में फंसे लोग )

   आप तो आत्मा है, भगवान के दास हैं, दिव्य हैं, भूल गये आप उसको। सब भुलाया है संसार वालों ने। आपकी मम्मी ने कहा- बेटा तू मेरा बेटा है, मैं तेरी मम्मी हूँ। बोल 'मम्मी', पापा ने कहा 'बोल पापा'। ये काहे का पापा है। अरे मम्मी पापा तो वो हैं, 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव।' जीवात्मा तो परमात्मा का पुत्र है ये हम भूल गये। अब जब शरीर मान लिया तो फिर शरीर के माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति सब बीमारी आ गई हमारे पास। अब हम फँस गये, अब हम कामना करेंगे संसार की। कामना की पूर्ति हो गई तो लोभ पैदा हुआ, कामना की पूर्ति नहीं हुई तो क्रोध पैदा हुआ, मर गये दोनों ओर से। अब नहीं बच सकते। अब एक बच्चा, दो बच्चा, चार बच्चा, बच्चे के बच्चा, नाती, पोता पचास आदमी का परिवार हो गया। बड़े खुश हो रहे हैं बूढ़े बाबा जी, हमारे इतनी बड़ी......। देखो। क्या! उसमें एक एक्सीडेन्ट हुआ रोये आप, एक मरा, रोये आप। अब कुछ न कुछ तो होता रहेगा जब इतना बड़ा परिवार है।और उसमें आपका अटैचमेन्ट है, आपको रोना पड़ेगा। तो सबके दुःख में रोये और अपने दुःख में अलग रोये बस रोते रोते मर गये।

( मन से भक्ति करनी है )

   भगवान की भक्ति करने का तो प्रश्न ही नहीं आया। क्योंकि हमने किया ही नहीं मन से भक्ति, हमने तो जप किया, गुरु जी ने कहा, ऐ तेरे कान में एक मंत्र बोल रहा हूँ, इसकी एक माला जप लिया कर इन बाबाओं से पूछो कि तुम क्या दे रहे हो हमको? अरे पूछो, हिम्मत करो, अपने गुरु से पूछो। तुमने क्या दिया हमको? मंत्र! क्या है इस मंत्र में? क्या मतलब है इस मंत्र का? हे भगवान् आपको नमस्कार है, हे भगवान् आपकी शरण में हैं। तो ये जो आप मंत्र दे रहे हैं इसको हम हिन्दी में बोलें, पंजाबी में बोलें, बंगाली में बोलें तो भगवान् खुश नहीं होंगे, ये राम और श्याम जो नाम भगवान् के हम सुनते हैं इससे वो बड़ा है हाँ, हाँ बड़ा है। कैसे बड़ा है, क्यों बड़ा है। वो हमारे गुरु परम्परा से आया है। अच्छा। तो उसमें विशेष शक्ति होगी हाँ, अब समझे तुम। अच्छा तो गुरु जी ये बताओ कि जब वो मंत्र आपने कान में दिया, तो हमारे ऊपर तो बड़ा प्रभाव पड़ना चाहिये, अरे मामूली से इलेक्ट्रिसिटी को हम छू लेते हैं तो हालत खराब हो जाती है। और आपने कान में मंत्र दिया तो उसका असर होना चाहिये हमारे ऊपर वो तो हुआ नहीं। हम तो और आसक्त होते जा रहे हैं संसार में।

( सबसे परेशान, हताश!! )
   पहले अकेले थे, अब एक बीबी आ गई, अब एक बच्चे दो बच्चे हो गये, तो और अटैचमेन्ट हमारा बढ़ रहा है।आपका मंत्र कहाँ गया? तो तुम्हारा बर्तन खराब है, तो हमारा पात्र खराब है, तो गुरुजी आपका दिमाग खराब है जो आपने दिया मंत्र। पहले बर्तन बनाते। अरे हम ए, बी, सी, डी नहीं जानते और हमको लॉ क्लास में दाखिला दे दिया। क्या पढ़ेगे हम। आपने धोखा दिया। कोई पूछने वाला नहीं, जो डरते हैं अपने अपने गुरु से। और गुरु जी ने कहा है- चुप! बोलना नहीं, बस पूजा किया करना हमारी। 

( वास्तविक मंत्र दीक्षा से होती है सीधे भगवत्प्राप्ति )

  ये अन्तःकरण शुद्धि के बाद, गुरु देता है मंत्र। और मंत्र में शक्ति देता है और शक्ति देने से तत्काल भगवत्प्राप्ति, माया निवृत्ति सब काम खत्म। ये शास्त्र वेद का सिद्धान्त है। एक बहुत बड़े पादरी ने हमसे पूछा कि आपके कितने लाख शिष्य हैं, हमने कहा एक भी नहीं। आप जगद्गुरु है, ओरिजनल जगद्गुरु । हाँ, हाँ, वो तो बना दिया ओरिजनल जगद्गुरु, काशी विद्वत् परिषत् ने लेकिन हम गलत काम नहीं करते। किसको शिष्य बनावें, कोई पात्र मिले तब न, लखपति, करोड़पति को बनावें, कलेक्टर, कमिश्नर, गवर्नर को बनावें किस को बनावें? पहले पात्र बनाओ, तब कोई दिव्य सामान उसमें दिया जा सकता है। तो हम लोगों के गुरुओं ने सब बिगाड़ दिया और कह दिया, ये पाठ करो, ऐसे पूजा कर लो, ऐसे जप कर लो, बस हो जायेगा तुम्हारा काम। इससे काम नहीं बनेगा, आप लोग नोट कर लो। 

(भगवान के लिए आसूं बहाना होगा )

   आँसू बहाकर भगवान् से उनका दर्शन, उनका प्रेम माँगना होगा। ये जो कीर्तन करते हैं आप लोग न हरे राम हरे राम, हे हरि! हे राम! ये रोकर बोलो, रोकर पुकारो उनको और कुछ माँगो मत। एक बड़ी बीमारी हम लोगों में, ये है जो भगवान् की भक्ति करते भी हैं, थोड़ी बहुत वो संसारी कामना लेकर करते हैं, हमारा ये काम हो जाए, हमारा ये काम बन जाए , इसका मतलब तुम समझते हो संसार में सुख है फिर क्यों बोलते हो, राम नाम सत्य है। संसार में सुख मानते हो तो भगवान् के पास क्यों जा रहे हो? संसार की भक्ति करो। भगवान् में सुख है अगर मानते हो तो भगवान् की भक्ति करो। माँगो संसार और भगवान् के पास जा के, तो क्यों जी संसार में कोई मिठाई की दुकान पर चप्पल तो नहीं माँगता। ऐ! एक जोड़ी चप्पल दे दे। और संसार में तुमको सुख समझ में आ रहा है तो संसार के पास जाओ। तो हमने समझा ही नहीं अभी क ख ग घ कि मन को ही भक्ति करनी है। एक बार राम मत कहो, श्याम मत कहो, राधे मत कहो, लेकिन मन का अटैचमेन्ट भगवान् में कर दो भगवत्प्राप्ति हो जाएगी। और अगर मन का अटैचमेंट नहीं किया, तो इन्द्रियों से-

बहु जन्म करें यदि श्रवण कीर्तन, तभू न पाय कृष्ण पदे प्रेम धन।

   गौरांग महाप्रभु ने कहा हजारों जन्म तुम राम राम राम राम करते रहो कुछ नहीं मिलेगा। करके देख लो संसार का अटैचमेन्ट जाता है क्या इससे। ये तो जबान से बोल रहे हो, मन तो संसार में है। भगवान् ने अर्जुन को जो गीता में समझाया वो क्या है -

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध च।  (गीता ८-७) 

   मन का स्मरण मेरा हो और इन्द्रियों से वर्क संसार का हो। हम उल्टा करते हैं इसका। मन का अटैचमेन्ट संसार में हो और इन्द्रियों का वर्क भगवान् का हो, क्या मिलेगा। अरे दस साल हो गये करते करते बीस साल, अरे दस जन्म हो जाएं क्या मिलेगा। तुम साधना ही उल्टी कर रहे हो। भगवान् के द्वारा ही अन्तःकरण शुद्ध होगा। ये मन जब भगवान् में लगेगा तब अन्तःकरण शुद्ध होगा। और तब ये दैवी सम्पत्तियाँ आयेंगी दया करना, परोपकार जो कुछ भी ये दैवी सम्पत्तियाँ है, जिसको आप लोग अच्छा आचरण कहते हैं, ये तब आयेगा जब आपका अन्तःकरण शुद्ध होगा और इसके शुद्ध करने के लिये भगवान् का रूपध्यान करके आँसू बहाना पड़ेगा। 

( रोते हुए भगवान का रूपध्यान )

  रूपध्यान, आँसू, ये दो शब्द याद रखो। भगवान् का रूपध्यान, क्योंजी भगवान् को देखा नहीं अहो बड़ा अच्छा है नहीं देखा अगर देखोगे तो नास्तिक हो जाओगे। क्योंकि भगवान् का असली रूप तो तुम देख नहीं सकते आपकी आँख प्राकृत है, मैटेरियल है, पंचमहाभूत की है और भगवान् दिव्य हैं। उनका शरीर दिव्य है इसलिये पहले बर्तन बनाओ, अन्तःकरण को, इन्द्रियों को दिव्य बनाओ तब भगवान् का दर्शन कर सकोगे। तो भगवान् को पहले मन से रूप उनका बनाओ या कोई फोटो रख लो, उसकी हैल्प ले लो, या मूर्ति रख लो या मन से बनाओ सबसे अच्छा है मन से क्यों? इसलिये जैसे मान लो तुम्हारी इच्छा है, भगवान् को हीरे का हार पहनाते अगर हमारे पास पैसा होता तो, अब हीरे का हार पहनाने के लिये दस अरब रुपया चाहिये, वो कहाँ से आयेगा हमारे पास दस लाख भी नहीं। हाँ आँख बंद करो, और श्यामसुन्दर को खड़ा करो और ये पहना दिया। हीरा, जो मन में आये श्रृंगार करो भगवान् का। भगवान् ये नहीं कहते ऐसा ही करो। तुम जैसा भी करो उसको हम असली मान लेगें, ये भगवान् का वाक्य है, तो इस प्रकार रूपध्यान करो फिर नाम लो, पहले रूपध्यान फिर नाम यानी पहले मन फिर इन्द्रियाँ । नाम भी इन्द्रियों से लो, ठीक है, है तो काम में लो उसको भी, कीर्तन करो, लेकिन स्मरण सबसे पहले, क्योंकि मन को ही तो ठीक करना है पाप तो मन में है, आँख में, कान में, 'पाप नहीं रहा करता। अन्तःकरण को शुद्ध करना है, मन को शुद्ध करना है। इसलिये मन से रूपध्यान करते हुये रोकर, उनको पुकारना है प्लस दूसरी साधना जहाँ भी जाओ, कहीं भी जाओ हमारे साथ, हमारे हृदय में बैठे हैं ये रियलाइज करो, रियलाइज़ करो एक मिनिट को नही सदा। हमारे साथ हमारे अन्दर बैठे हैं, देखो! एक अरबपति अकड़ के क्यों चलता है। बैंक में एक अरब है जेब में तो नहीं है। अरे तो उससे क्या हुआ बैंक में तो है, हाँ, तो हमारे हृदय में श्यामसुन्दर बैठे हैं, ये फीलिंग सदा होनी चाहिये जैसे अपनी फीलिंग आपको होती है, मैं हूँ, मैं हूँ, ऐसे ही मेरा बाप श्यामसुन्दर, मेरे प्राणवल्लभ श्यामसुन्दर, अन्दर बैठे हैं, फैक्ट है, वेद कहता है - 

द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते। 

तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति॥  (श्वेताश्वतरोपनिषद् ४-६, मुण्डकोपनिषद् ३-१-१)

  और गधे भी कहते हैं इंडिया के घट घट व्यापक राम, सबके अन्दर बैठे हैं राम, तो क्यों नहीं फील करते राम बैठे हैं भूल जाते हैं आप लोग। कोई पाप करते हैं जब आप तो पहले क्या करते हैं प्लानिंग पाप करने की बात सोचते हैं। तो सोचते समय ये क्यों नहीं सोचते कि वो नोट हो रहा होगा अन्दर, वो बैठा हुआ है नोट करता है आइडियाज वर्क नहीं। वर्क का कोई मूल्य नहीं है। भगवान कहते हैं करोड़ों मर्डर कर अर्जुन! हम नोट नहीं करेंगे। तेरा मन क्या कर रहा है ये नोट करेंगे। हनुमान ने करोड़ों ब्रह्म हत्या की लंका में, राम ने नोट नहीं किया, क्योंकि उसका मन राम के पास था। सब कछ निर्भर करता है मन पर। 

( रूपध्यान प्रमुख है )

   तो रूपध्यान करना है और हर जगह हमेशा भगवान् को अपने साथ, महसूस करना है। पहले एक-एक घण्टे में करो, हाँ अन्दर बैठे हैं हाँ बैठे हैं। बोलो मत, फील करना है, अन्दर से महसूस करो। फिर। एक घंटे से आधा घंटा, एक मिनिट, एक सैकेण्ड पर आ जाओ। अन्दर बैठे हैं, अन्दर बैठे हैं हर समय आप नशे में रहेंगे और वो अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायक सर्वशक्तिमान भगवान अन्दर बैठे हैं मेरे बराबर कौन है ऐसी फीलिंग होगी आपको। और कोई पाप करने जब आप चलेंगे, तो धक् होगा अन्दर अरे! वो नोट कर लेंगे, फिर कृपा कैसे करेंगे वो, कि हमसे चोरी करता है हम अन्दर बैठे हैं और तू पाप की बात सोच रहा है तो हम पाप नहीं कर सकेंगे। तो हर समय भगवान को सर्वत्र महसूस करना एक साधना ये और एक एकांत में जो समय मिले, बैठकर भगवान् का रूपध्यान करके और रोकर उनका नाम गाओ, गुण गाओ, लीला गाओ सब ठीक इससे अन्तःकरण शुद्ध होगा जब पूर्ण शुद्ध हो जायेगा, पूर्ण वैराग्य हो जायेगा संसार से, बाप मर गया, मां मर गयी, बेटा मर गया कोई मर गया, हाँ कोई फीलिंग नहीं। एक हजार गाली दिया पड़ोसी ने कोई फीलिंग नहीं।

   जब इस स्टेज पर आप आ जायेंगे तब फिर भगवान् गुरु आपको स्वरूप शक्ति देगा, तब देगा। ये जो जैसे आप अपने कमरे में मकान में सब फिटिंग कर लीजिये रॉड लगा दीजिये, पंखे लगा दीजिए अब लेकिन कुछ हुआ नहीं, अरे तो क्या होता पावर हाउस ने तो दिया ही नहीं। अब पावर हाउस से तार जोड़ दिया मैकेनिक ने आ के, अहा, लाइट भी हो गई, पंखे भी चल गये। तो ऐसे ही जब गुरु कान फूंकेगा, मंत्र देगा, वो चाहे छू ले, चाहे चिपटा ले, चाहे कान में दे, तुरन्त माया गई, दिव्यानन्द मिला सदा को, भगवद् दर्शन हुआ सदा को। गुरु जी ने खाली एक अक्षर बोल दिया और वो गुरु हो गया, हम उनके चरण धोके पीएं, वो चाहे राक्षस हो, घोर पाप कर रहे हों, अरे उन्होंने सबसे पहले हमको धोखा दिया कि तुम चेले हो गये हम गुरू हो गये। क्या ? ये जो हमने कह दिया रामाय नमः, कृष्णाय नमः, ये रामाय नमः, कृष्णाय नम: तो सब जगह लिखा गीता, भागवत, पुराण सर्वत्र हम पढ़ लेंगे तुमने क्या दिया हमको। अगर संसार का वैराग्य देते, भगवान् का अनुराग देते तो हम समझते कि तुमने कुछ दिया, सब धोखा है इस धोखे से बचिये, और मन से भक्ति कीजिये, तो मन शुद्ध होगा तो अपराध नहीं होगा, तो फिर ये बदनामी नहीं होगी कि हमारे देश में इतनी भक्ति दिख रही है, फिर भी इतना भ्रष्टाचार क्यों है।

   -   भक्तियोग रसावतार जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु महाराज द्वारा श्रीमुख से 

🌷 राधे राधे 🌷

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