
यह निम्नलिखित पंक्तियाँ 'मै कौन, मेरा कौन भाग-26' से उद्घृत हैं।
मै योगियाों से एक बात पूछूं, आप लोग भी पूछिएगा। ऐ, योगी महाराज! तुम पतंजलि के अनुयायी हो; हाँ, हाँ, पतंजलि योग है हमारा। अच्छा अच्छा। तो पतंजलि ने योग के जो आठ क्लास बताए हैं, उसमें पहला कौन है, दूसरा कौन है, तीसरा कौन है, चौथा कौन है, पाँचवाँ कौैन है; कृपया बता दीजिए। ये तो दर्जा एक की पढाई पूछ रहे हैं हमसे; हाँ, हाँ, ठीक है, देखिए मै बता दूँ ना।
योग में आठ चीजें होती हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, समाधि। तो इसमें पहला है नियम, दूसरा है नियम। तो नियम जो है, उसमें सबसे पहला है सौच। सौच माने, सब लोग ध्यान से सुनो। कोई योगी का बच्चा मिल जाए तो पूछ लेना उससे। छः होते हैं नियम।
सौच संतोष तपः स्वाध्याय ईश्वरप्रणिधानानि नियमाः (पतंजलि)
सौच माने दो प्रकार की शुद्धि, शरीर की और मन की।
सौचं दुविधम् शारीरं मानसं च (वेद कह रहा है) और संतोष; हाँ, आज रोटी भी नहीं मिली, हाँ, मुस्कुरा रहे हो न। अरे नहीं हम तो बहुत परेशान हैं। अच्छा योगीराज, बहुत भूख लगी है।
स्वाध्याय, वेद का अध्ययन करते हैं। ईश्वरप्रणिधानानि, श्रीकृष्ण की भक्ति करते हो। नहीं जी, हम तो सबेरे-सबेरे जाके आसन करने लगते हैं। आसन और प्राणायाम। ये तो बाद की बाते हैं।
पहले मन को शुद्ध करो, ईश्वरभक्ति करो। ये यम नियम है। 'अहिंसा सत्यमस्तेयं' ये यम हैं। झूठ नहीं बोलो कभी। ब्रह्मचर्य से रहो। ये तमाम यम-नियम का पालन कर लो, ईश्वरभक्ति से मन शुद्ध कर लो। इसके बाद है आसन। उसके बाद है प्राणायाम, चौथा। और तुमने पहले ही लोगों को सिखा दिया, चौथा। ऐ, नाक पकड़ो! आ, अह्या। ह, ह, ह। इससे बैकुंठ जाएंगे लोग? इतना टाइम बर्बाद कर रहे हो।

इनसे सबसे कहो, श्रीकृष्ण को ध्यान करो। रोकर उनको पुकारो। अंतःकरण को शुद्ध करो पहले। और अगर ये सब कर लोगे तो योग से न माया जाएगी, न भगवान मिलेंगे। भगवान ने कहा, मै बताउं योग किसे कहते हैं? हाँ, हाँ महाराज। अब आपसे अधिक कौन जानेगा। हाँ तो 'वासुदेव परा योगा:' जो मेरे निमित्त हो वो है योग।
एतावान् योग आदिष्टो मच्छिष्यैः सनकादिभिः।
सर्वतो मन आकृष्य मय्यद्धाऽऽवेश्यते यथा॥ (भागवत ११-१३-१४)
जीवात्मा का परमात्मा से संयोग हो, ये योग होता है। इससे परमानन्द मिलेगा, माया निवृत्ति होगा। ये पैर के बल खड़े होने से भगवान नहीं मिला करेंगे। ये तो फिसिकल व्यायाम है। बुरा नहीं है। करो लेकिन इसको योग क्यों कहते हो। ये योग तो माने मन का भगवान में एकत्व हो जाए, जुड़ जाए। भगवान ने कहा है ये।
संयोगो योगइत्युक्तो जीवात्म परमात्मनोः जीवात्म परमात्मा का योग, माने मिलन।

अरे कोई भी मार्ग जो संसार में बना है, बनेगा उसका ऐम सोचो क्या होना चाहिए। दुखनिवृत्ति, आनन्दप्राप्ति। तो ये भगवत्कृपा से होगी। तो भगवत्कृपा के लिए ही योग हो, धर्म हो, ज्ञान हो। अन्यथा उसका परिणाम मायिक होगा। ध्यान से सुनो। अगर भगवान के निमित्त कर्म, धर्म, योग, ज्ञान, भक्ति नहीं है तो उसका फल मायिक होगा।
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[ संदर्भ: प्रेम मार्ग, पृष्ठ संख्या 24-25, अगस्त 2017 ] ⤵
भगवान् श्रीकृष्ण कह रहे हैं उद्धव से - उद्धव ये योग शब्द सुनते हो न, योग मार्ग है कोई ? हाँ, सुना है, महाराज ! अष्टाङ्ग योग होता है । अरे, अष्टांग-फस्टांग नहीं योग का मतलब होता है, समस्त विश्व से, समस्त वस्तुओं से, समस्त वृत्तियों से, मन को हटाकर, केवल मुझमें लगा दे, इसका नाम योग होता है । योग माने जुड़ जाना । मन का मनमोहन से जुड़ जाना, यह योग है। श्यामसुन्दर कौन हैं ? यह जान लो, यही ज्ञान है, श्यामसुन्दर की सेवा कैसे की जाये, यह जान लो, यही कर्म है, बस । और कर्म धर्म नहीं होता कुछ, अगर होता है, तो वह मायिक है, बन्धन कारक है, चौरासी लाख में घुमाने वाला है ।
- जगद्गुरूत्तम श्री कृपालु जी महाराज
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